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________________ सूत्र १३ । ] सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् । २०५ इनमेंसे तारा और ग्रहोंका चार नियत नहीं है । अतएव उनका चार- भ्रमण सूर्य और चन्द्रमाके ऊपर तथा नीचे दोनों ही भागमें हुआ करता है । अनवस्थित गतिवाले होनेके कारण ही ये-अङ्गारकादिक सूर्यसे दश योजनके अन्तरपर रहा करते हैं । इस समान भूमितलसे आठ सौ योजन ऊपर चलकर सूर्योंके विमान हैं । सूर्यस्थानसे अस्सी योजन ऊपर चलकर चन्द्रमाओंके विमान हैं । चन्द्रमाओंके स्थानसे बीस योजन ऊपर चलकर तारा हैं। इन ज्योतिष्कदेवों के विमान उद्योतशील हैं । उन विमानों में जो रहें, उनको ज्योतिष्क अथवा ज्योतिष् देव भी कहते हैं । ज्योतिष और ज्योतिष्क शब्दका एक ही अर्थ हैं । इन ज्योतिष्कदेवोंके मुकुटोंमें जो चिन्ह रहा करते हैं, वे शिरोमुकुटोंसे अलंकृत और प्रभामण्डलके समान तथा उज्ज्वल वर्णके हुआ करते हैं । तथा वे यथायोग्य सूर्यमण्डल चन्द्रमण्डल और तारामण्डलरूप हैं। अर्थात् जो सूर्यके चिन्ह हैं, वे सूर्यमण्डलके आकार हैं और जो चन्द्रमाके चिन्ह हैं, वे चन्द्रमण्डलके आकार हैं, तथा जो ताराओं के चिन्ह हैं, वे तारामंडल के आकार हैं | ज्योतिष्कदेव इन चिन्हों से युक्त प्रकाशमान हैं । भावार्थ-तीसरे देवनिकायका नाम ज्योतिष्क है । इन देवोंके विमान प्रकाशशील हैं, उनमें रहनेके कारण अथवा स्वयं भी ये द्युतिमान् हैं, अतएव इनको ज्योतिष्क कहते हैं । इनके पाँच भेद हैं, जैसा कि ऊपर लिखा जा चुका है। इनका अस्तित्व सभी द्वीप समुद्रोंमें है । किस किस द्वीप और किस किस समुद्रमें कितने प्रमाणमें कौन कौनसे ज्योतिष्क विमान हैं, यह बात आगमके अनुसार समझ लेनी चाहिये । जम्बुद्वीपमें इनका भ्रमण मेरुसे ११२१ योजनके अन्तपर हुआ करता है, और यह ज्योतिर्लोक एकसौ दश योजन ऊँचा है । इनकी अवधि विक्रिया विभूति आदि ग्रन्थान्तरोंसे समझनी चाहिये | ये ज्योतिष्कदेव सर्वत्र समान गति और भ्रमण करनेवाले हैं, या उसमें किसी प्रकारका अन्तर है ? इस प्रश्नका उत्तर देने के लिये आचार्य सूत्र करते हैं कि : १--दिगम्बर सम्प्रदायके अनुसार पहले ताराओंके विमान हैं, और उनके ऊपर सूर्यादिकों के विमान हैं, जिसका कि क्रम इस प्रकार है - " नवदुत्तरसत्तसया दससीदी चदुदुग तियचउक्के । तारा रविससि रिक्खा बुह भग्गव अंगिरा सणी ॥ " अर्थात् पृथ्वीतलसे १९० योजन ऊपर ताराओंके विमान हैं, उनसे दश योजन ऊपर सूर्यका उससे ८० योजन ऊपर चन्द्रमाका उससे तीन योजन ऊपर नक्षत्रोंका विमान, उससे भी तीन योजन ऊपर बुधका विमान, उससे तीन योजन ऊपर शुक्रका विमान, उससे तीन योजन ऊपर चलकर बृहस्पतिका, विमान, उससे भी चार योजन ऊपर चलकर मंगलका विमान, और उससे भी ऊपर चार योजन चलकर शनिका विमान है। इस प्रकार सम्पूर्ण ज्योतिर्गणकी ऊँचाई एक सौ दश योजन और तिर्यग् घनोदधि पर्यन्त असंख्य द्वीप समुद्र प्रमाण है । २- ज्योतिष्क शब्दकी निरुक्ति पहले बता चुके हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001680
Book TitleSabhasyatattvarthadhigamsutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorKhubchand Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1932
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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