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________________ सूत्र १८ । सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् । द्वीन्द्रिय जीवोंकी उत्कृष्ट भवस्थिति बारह हजार वर्षकी है । त्रीन्द्रियोंकी उनचास रात्रि दिन, और चतुरिन्द्रियोंकी छह महीना है। इनकी उत्कृष्ट कायस्थिति संख्यात हजार वर्षकी है। पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च पाँच प्रकारके हैं ।-मत्स्य उरग परिसर्प पक्षी और चतुष्पद । इनमेंसे मत्स्य उरग और भुजग ( परिसर्प ) इनकी उत्कृष्ट भवस्थिति कोटिपूर्व वर्षकी है पक्षियोंकी उत्कृष्ट भवस्थिति पल्यके असंख्यातवें भाग है । गर्भन चतुष्पदोंकी उत्कृष्ट भवस्थिति तीन पल्यकी है । इसमें मत्स्योंकी भवस्थिति कोटिपूर्व, उरगोंकी त्रपन, भुनगोंकी ब्यालीस, स्थलचर पक्षियोंकी बहत्तर और सम्मर्छनजीवोंकी भवस्थिति चौरासी हजार वर्षों की है । इन सबकी कायस्थितिका उत्कृष्ट प्रमाण सात आठ भवग्रहण करने तक है । सम्पूर्ण मनुष्य और तिर्यञ्चोंकी कायस्थितिका जघन्य प्रमाण अन्तर्मुहर्तमात्र ही है । इस प्रकार तत्त्वार्थाधिगम भाष्यका लोकप्रज्ञप्ति नामका तीसरा अध्याय समाप्त हुआ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001680
Book TitleSabhasyatattvarthadhigamsutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorKhubchand Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1932
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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