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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम [ तृतीयोऽध्यायः मनुष्यपर्यायमें जीवित रहनेका काल इससे कम या ज्यादा नहीं हो सकता, इसको भवस्थिति कहते हैं । निरन्तर उसी भवके धारण करनेकी कालमर्यादाका नाम कायस्थिति हैं । एक जीव मनुष्य पर्यायको धारण करके आयु पूर्ण होनेपर पुनः मनुष्य हो और फिर भी उसी तरह बार बार यदि मनुष्य भवको ही धारण करता जाय, तो वह निरन्तर कितने मनुष्यके भव ग्रहण कर सकता है, इसके प्रमाणका ही नाम कायस्थिति है । मनुष्योंकी भवस्थितिका उत्कृष्ट प्रमाण सात आठ भव ग्रहण करने तकका है । क्योकि कोटिपूर्वकी आयुवाला मनुष्य पुनः पुनः मरकर यदि कोटिपूर्वकी आयुवाला ही होता जाय, तो वह सात वारसे अधिक नहीं हो सकता। आठवें भवमें देवकुरु अथवा उत्तरकुरुकी भोगभूमिमें ही उत्पन्न होता है, जहाँसे कि मरण करके नियमसे देवपर्याय धारण करनी पड़ती है।
तिर्यञ्च जीवोंकी भी भवस्थितिका प्रमाण मनुष्योंके समान ही समझना चाहिये । अर्थात् उत्कृष्ट तीन पल्य और जघन्य अन्तर्मुहूर्त । संक्षेपसे तिर्यञ्चोंकी भवस्थितिका यही प्रमाण है। विस्तारसे उसका प्रमाण इसप्रकार है ।
भाष्यम्-व्यासतस्तु शुद्धपृथिवीकायस्य परा द्वादश वर्षसहस्राणि, खरपृथिवीकायस्य द्वाविंशतिः, अपकायस्य सप्त, वायुकायस्य त्रीणि, तेजाकायस्य त्रीणि रात्रिंदिनानि वनस्पतिकायस्य दश वर्षसहस्राणि । एषां कायस्थितिरसंख्येयाः अवसर्पिण्युत्सर्पिण्यः। वनस्पतिकायस्यानन्ताः । द्वीन्द्रियाणां भवस्थितिर्द्वादश वर्षाणि, त्रीन्द्रियाणामकोनपश्चाशद् रात्रिदिनानि । चतुरिन्द्रियाणां षण्मासाः । एषां कायस्थितिः संख्येयानि वर्षसहस्राणि । पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिजाः पञ्चविधा:-तद्यथा-मत्स्याः उरगाः परिसर्पाः पक्षिणश्चतुष्पदा त । तत्र मत्स्यानामुरगाणां भुजगानां च पूर्वकोट्येव । पक्षिणां पल्योपमासंख्येयभागः। चतुष्पदानां त्रीणि पल्योपमानि गर्भजानां स्थितिः । तत्र मत्स्यानां भवस्थितिः पूर्वकोटिस्त्रिपंचाशदुरगाणां द्विचत्वारिंशद् भुजगानां द्विसप्ततिः पक्षिणां स्थलचराणां चतुरशीतिवर्षसहस्राणि सम्मूर्छितानां भवस्थितिः । एषां कायस्थितिः सप्ताष्टौ भवग्रहणानि । सर्वेषां मनुष्यतिर्यग्योनिजानां कायस्थितिरप्यपरा अन्तमुहूर्तेवेति ।
इति तत्त्वार्थाधिगमे लोकप्रज्ञाप्तिर्नामा तृतीयोऽध्यायः समाप्तः । अर्थ-तिर्यञ्चोंकी भवस्थितिका प्रमाण सामान्यतया ऊपर लिखे अनुसार है। विशेषरूपसे यदि जानना हो, तो वह इस प्रकार समझना कि___ शुद्ध पृथिवीकायकी उत्कृष्ट भवस्थिति बारह हजार वर्षकी है । खर पृथिवीकायकी बाईस हजार वर्षकी, जलकायकी सात हजार वर्षकी और वायुकायकी तीन हजार वर्षकी है। अग्निकायकी भवस्थितिका उत्कृष्ट प्रमाण तीन रात्रि दिनका है। तथा वनस्पतिकायकी उत्कृष्ट भवस्थिति दश हजार वर्षकी है। इनमेंसे वनस्पतिकायको छोड़कर बाकी जीवोंकी उत्कृष्ट कायस्थितिका प्रमाण असंख्यात अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी है । वनस्पतिकायकी उत्कृष्ट कायस्थिति अनन्त उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी है ।
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