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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् [ तृतीयोऽध्यायः सम्मिलित है, अतएव वह भी कर्मभूमि समझा जा सकता था, इसके लिये ही उनको छोड़कर ऐसा कहा है। क्योंकि देवकुरु और उत्तरकुरुका भाग कर्मभूमि नहीं है, भोगभूमि है ।
नारकादि चतुर्गतिरूप संसार अत्यन्त दुर्गम-गहन है, क्योंकि वह अनेक जातियोंयोनियोंसे पूर्ण और अति संकटमय है । इसका अन्त-नाश सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्ररूप जिस मोक्षमार्गके द्वारा हुआ करता है, या हो सकता है, उसके ज्ञाता प्रदर्शक और उपदेष्टा भगवान् तीर्थंकर एवं परमर्षि इन पंद्रह कर्मभूमियोंमें ही उत्पन्न होते हैं। तथा इन क्षेत्रोंमें ही उत्पन्न हुए मनुष्य सम्पूर्ण कर्मोका क्षय करके मोक्षपदको प्राप्त किया करते हैं, न कि अन्य क्षेत्रों में उत्पन्न हुए मनुष्य । इस प्रकारसे ये ही भमियाँ ऐसी हैं, कि जहाँपर निर्वाणपद-सिद्धिपदको प्राप्त करने के योग्य कर्म किया जा सकता है । इसी लिये इनको कर्मभूमि कहते हैं। इनके सिवाय जो भूमियाँ हैं, जिनमें कि बीस क्षेत्र और पूर्वोक्त एकोरुकादिक अन्तरद्वीप अधिष्ठित हैं, वे सब अकर्मभूमि हैं । क्योंकि उनमें तीर्थंकरका जन्म आदि नहीं पाया जाता । देवकुरु और उत्तरकुरुका भाग कर्मभूमिके अभ्यन्तर होनेपर भी कर्मभूमि नहीं है, क्योंकि वहाँपर चारित्रका पालन नहीं हुआ करता । ___इस प्रकार मनुष्योंके भेदोंको बताकर उनकी आयुका जघन्य तथा उत्कृष्ट प्रमाण बतानेके लिये सूत्र कहते हैं:
सूत्र-नृस्थिती परापरे त्रिपल्योपमान्तर्मुहूर्ते ॥ १७ ॥
भाष्यम्-नरो नरा मनुष्या मानुषा इत्यनर्थान्तरम् । मनुष्याणां परा स्थितिस्त्रीणि पल्योपमानि, अपरा अन्तर्मुहूर्तेति।। __अर्थ-नृ नर मनुष्य और मानुष ये सब शब्द एक ही अर्थके वाचक हैं-पर्यायवाची हैं। मनुष्योंकी उत्कृष्ट आयुका प्रमाण तीन पल्य और जघन्य प्रमाण अन्तर्मुहूर्त है ।
भावार्थ-मनुष्य आयु और मनुष्य गति नामकर्मके उदयसे जो पर्याय प्राप्त होती है, उस पर्यायसे युक्त जीवको मनुष्य कहते हैं । पर्यायसम्बन्धी स्वभावोंके अनुसार ऐसे जीवको नृ नर मनुष्य मानुष मर्त्य मनुज आदि अनेक शब्दोंसे कहते हैं । अभेद विवक्षासे सामान्यतया ये सभी पर्यायवाचक शब्द एक मनुष्य पर्यायरूप अर्थके ही वाचक हैं । जिस मनुष्य आयुकर्मके उदयसे यह पर्याय प्राप्त हुआ करती है, उसका प्रमाण अन्तर्मुहर्त्तसे लेकर तीन पल्यतकका है । अर्थात् कोई भी मनुष्य अन्तर्मुहूर्त से पहले मर नहीं सकता, और तीन पल्यसे अधिक जीवित नहीं रह सकता ।
१-पल्य उपमामानका एक भेद है। इसका प्रमाण गोम्मटसार कर्मकाण्डकी भूमिकामें देखना चाहिये। पल्यके तीन भेद हैं-व्यवहारपल्य, उद्धारपल्य और अद्धापल्य । यह आयुका प्रमाण अद्धापल्यकी अपेक्षासे समझना चाहिये । २-मनुष्य और तिर्यञ्चोंकी स्थिति आगे चलकर दो प्रकारकी बताई है-भवस्थिति और कायस्थिति । इनमेसे तीन पल्यका प्रमाण भवस्थितिका है । कायस्थितिका प्रमाण आगे लिखेंगे।
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