________________
रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
[ तृतीयोऽध्यायः
आधा इषुका प्रमाण समझना चाहिये । इस नियमके अनुसार भरतादिक क्षेत्रोंके इषुका प्रमाण निकाल लेना चाहिये।
इषुके वर्गको छहसे गुणा करके ज्याके वर्गमें मिलाना चाहिये, पुनः उसका वर्गमूल निकालनेसे धनुःकाष्ठका प्रमाण निकलता है ।
___ जीवाके वर्गमें चारका भाग देनेसे जो लब्ध आवे, उसको इषुके वर्गमें मिलाना चाहिये। पुनः उसमें इषुका भाग देना चाहिये । लब्ध-राशिको वृत्तक्षेत्रका विष्कम्भ समझना चाहिये ।
उत्तरके धनुःकाष्ठका जो प्रमाण हो, उसमेंसे दक्षिणके धनुःकाष्ठके प्रमाणको घटा देना चाहिये । जो बाकी रहे उसका आधा बाहुका प्रमाण समझना चाहिये ।
इन करण-सूत्रोंके अनुसार सम्पूर्ण क्षेत्रोंके तथा वैताब्य आदि समस्त पर्वतोंके आयाम विष्कम्भ इषु ज्या धनुःकाष्ठके प्रमाणको समझ लेना चाहिये।
इस प्रकार जम्बूद्वीपके विषयका वर्णन करके द्वीपान्तरोंका भी वर्णन करनेकी इच्छासे ग्रन्थकार सूत्र कहते हैं
सूत्र-द्विर्धातकी खण्डे ॥ १२ ॥ भाष्यम्-एते मन्दरवंशवर्षधरा जम्बूद्वीपेऽभिहिता एते द्विगुणाधातकीखण्डे द्वाभ्यामिष्वाकारपर्वताभ्यां दक्षिणोत्तरायताभ्यां विभक्ताः। एभिरेव नामभिर्जम्बूद्वीपकसमसंख्याः पूर्वार्धे चापरार्धे च चक्रारकसंस्थिता निषधसमोच्छ्रायाः कालोदलवणजलस्पर्शिनो वंशधराः सेष्याकाराः । अरविवरसंस्थिता वंशा इति ॥ ___अर्थ-जम्बूद्वीपमें मेरुपर्वत क्षेत्र आदिका जो वर्णन किया है, उससे दूना प्रमाण धातकीखण्डमें उन सबका समझना चाहिये । क्योंकि यहाँपर दो इष्वाकारपर्वत पड़े हुए हैं, जोकि दक्षिण उत्तर लम्बे हैं, और जिनके कि निमित्तसे इस धातकीखण्डके दो भाग हो जाते हैं-पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध । दोनों ही भागोंमें जम्बूद्वीपके समान मे आदिक अवस्थित हैं । जम्बद्वीपमें जो पर्वत और क्षेत्रों आदिके नाम हैं, वे ही नाम यहाँपर भी हैं। पर्वत और क्षेत्रोंकी संख्या पूर्वार्ध और पश्चिमार्धमेसे प्रत्येकमें जम्बूद्वीपके समान है।
१-आचार्य ने इन करण-सूत्रोंका वर्णन संक्षेपमें ही किया है। क्योंकि विस्तारसे लिखनेमें ग्रन्थगौरवका भय है । कुछ विद्वानोंने इस विषयको विस्तृत बनानेके लिये और भी अनेक सूत्रोंकी रचना की है। किन्तु उसको शास्त्रनिपुणजन प्राचीन नहीं हैं ऐसा कहते हैं। २-ये एते इति क्वचित्पाउः । ३-मन्दरवर्षवंशधरा इति च पाठः । ४-चक्रारसंस्थिता इति च पाठान्तरम् । ५-इषु-वाणके समान इनका आकार है, इसी लिये इनको इष्वाकार कहते हैं। ६-समानसे मतलब पर्वत क्षेत्र ह्रद नदी आदिकी संज्ञासे है, न कि प्रमाण और संख्या आदिसे । क्योंकि पर्वतादिकोंकी जो संज्ञाएं जम्बूद्वीपमें हैं, वे ही धातकीखण्ड और पुष्करार्धमें हैं । संख्या जम्बूद्वीपसे धातकीखण्ड और पुष्करार्धमें दूनी है । जम्बूद्वीपमें एक भरत है, तो यहाँपर दो दो हैं । इनका प्रमाण जम्बूद्वीपकी अपेक्षा कई गुणा है। क्योंकि जम्बूद्वीपका विष्कम्भ एक लाख योजन तथा धातकीखंडका ४ लाख योजन और सूची १३ लाख योजन है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org