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सूत्र ४-५ । ]
सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ।
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आपसमें क्रोध करते और एक दूसरेके ऊपर प्रहार भी किया करते हैं, उसी प्रकार उन नारकियोंके भी अवधिज्ञान-विभंग के द्वारा दूर ही से आपसको देखकर तीव्र परिणामरूप क्रोध उत्पन्न हुआ करता है, जो कि भक्के निमित्तसे ही जन्य है, और जिसका कि फल अतिशय दुःखरूप है | उनके वह क्रोध उत्पन्न होता है, कि उसके पहले ही दुःखोंके समुद्घातसे पीडित हुए वे अन्य नारकी जिनका कि मन क्रोधरूप अग्निसे प्रज्वलित हो रहा है, अतर्कित रूपसे - अकस्मात् कुत्तोंकी तरह आ टूटते हैं, और अत्यन्त उद्धत हुए भयानक वैक्रियरूपको धारण करके वहींपर पृथिवी परिणामसे जन्य - पृथिवीरूप और क्षेत्र के माहात्म्यसे ही उत्पन्न हुए लोहमय शल शिला मुशल मुद्गर वछ तोमर तलवार ढाल शक्ति लोहघन खङ्गदुधारा लाठी फरशा तथा भिण्डिपाल - गोफ अथवा बन्दूक आदि आयुधों को लेकर अथवा हाथ पैर और दाँतोंसे आपसमें एक दूसरेके ऊपर आक्रमण करते हैं, और एक दूसरेका हनन करते हैं । तदनन्तर इस परस्परके घातसे छिन्न भिन्न शरीर होकर महा पीड़ासे चिल्लाते हुए रुधिरकी कीचड़ में लोटने आदिकी ऐसी चेष्टा किया करते हैं, जैसी कि कसाईखाने - वधस्थानमें प्रविष्ट भैंसा सूकर या भेड़ आदि पशु किया करते हैं । इसी प्रकार और भी अनेक तरहके परस्परोदीरित दुःख नरकों में नारकियोंके हुआ करते हैं ।
भावार्थ-विभङ्गके निमित्तसे जो दुःख होता है, वह मिथ्यादृष्टियों को ही होता है, न कि सम्यग्दृष्टियोंको । क्योंकि उनका जो ज्ञान होता है, वह समीचीन होता है । अतएव वे उन वस्तुओं में विरुद्धप्रत्यय करके दुःखका अनुभव नहीं किया करते ।
इस प्रकार परस्परके उदीरित दुःखों को दिखाकर नारकियों के एक विशेष प्रकारका और भी जो दुःख होता है उसको बतानेके लिये सूत्र कहते हैं—
सूत्र - संक्लिष्टासुरोदीरितदुःखाश्च प्राक् चतुर्थ्याः ॥ ५॥
भाष्यम् - संक्लिष्टासुरोदीरितदुःखाश्च नारका भवन्ति । तिसृषु भूमिषु प्राक् चतुर्थ्याः । तयथा -- अम्बाम्बरीषश्यामशबलरुद्रोपरुद्रकालमहाकालास्यासिपत्रवनकुम्भीवालुकावैतरणीखरस्वरमहाघोषाः पञ्चदश परमाधार्मिका मिथ्यादृष्टयः पूर्वजन्मसु संक्लिष्टकर्माणः पापाभिरतय आसुरीं गतिमनुप्राप्ताः कर्मक्लेशजा एते ताच्छील्यान्नारकाणां वेदनाः समुदीरयन्ति चित्रा - , मिरुपपत्तिभिः । तद्यथा - तप्तायोरसपायननिष्टप्तायः स्तम्भालिङ्गनकूटशाल्मल्ययारोपणावतरणायोघनाभिघातवासीक्षुरतक्षणक्षारतप्ततैलाभिषेचनायःकुम्भपाकाम्बरीषतर्जनयन्त्र पीडनायःशूल शलाका भेदनक्रकचपाटनाङ्गारदहनवाहनासूचीशाद्वलापकर्षणैः तथा सिंहव्याघ्रद्वीपश्वशृगालवृककोकमार्जारनकुलसर्पवायसगृधकाकोलूकश्येनादिखादनैः तथा तप्तवालुकावतरणासिपत्रवनप्रवेशनवैतरण्यवतारणपरस्परयोधनादिभिरिति ॥
अर्थ - चौथी भूमिके पहले - अर्थात् पहली दसरी और तीसरी भूमिके नारकियों के असुरोदीरित भी दुःख हुआ करता है । पूर्वजन्ममें जिन्होंने अति संक्लेशरूप कर्म किये हैं,
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