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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् [ तृतीयोऽध्यायः निद्रा आ जायगी । इस कल्पना द्वारा नारकियोंकी अति महान् उष्ण वेदनाका प्रमाण दिखाया है, जिससे यह बात सहज ही समझमें आ सकती है कि वहाँपर नारकियोंको उष्ण वेदनाका कष्ट कितना अधिक हुआ करता है । इसी प्रकार शीत वेदनाका प्रमाण भी कल्पनासे समझ लेना चाहिये ।-यदि कदाचित् किसी नारकीको शीत वेदनावाले नरकसे निकालकर माघमहीनेमें रात्रिके समय जब कि ठंडी हवा चल रही हो, और महान् तुषार पड़ रहा हो, आकाशमें-आवरण रहित स्थानमें पटक दिया जाय, तो यद्यपि वह प्रसङ्ग ऐसा है, कि जब बत्तीसीका कटकट शब्द होने लगता है, और अच्छी तरहसे हाथ पैरोंके कॉपनेका दुःख होने लगता है, परन्तु वह नारकी उस प्रसङ्गमें भी महान् सुखका अनुभव करने लगेगा, यहाँतक कि उसे उसमें भी गाढ निद्रा आ जायगी। इस तरहसे शीत वेदनाजन्य नरकोंका जो महान् दुःख बताया है, सो इस कल्पनासे समझमें आ सकता है।
भाष्यम्-अशुभतरविक्रियाः। अशुभतराश्च विक्रिया नरकेषु नारकाणां भवन्ति । शुभं करिष्याम इत्यशुभतरमेव विकुर्वते। दुःखाभिभूतमनसश्च दुःखप्रतीकारं चिकीर्षवः गरीयस एव ते दुःखहेतून विकुर्वत इति ॥
अर्थ-नारकियोंकी विक्रिया भी अशुभतर ही होती गई है । अर्थात् उक्त नरकोंमें उत्पन्न होनेवाले जीव अपने शरीरको नाना आकारोंमें जो विपरिणत करते हैं, सो यह विक्रियाविपरिणमन भी उनका उत्तरोत्तर अधिक अधिक अशुभ होता गया है । वे चाहते हैं, कि हम शुभ परिणमन करें-अपने शरीरको सुखद या शान्तिकर बना लें, परन्तु वह वैसा न बनकर अशुभरूप ही बन जाता है । जब उनका चित्त दुःखोंसे ग्रस्त होता है, तब वे उन दुःखोंके प्रतीकार करनेकी इच्छा करते हैं, परन्तु वैसा होता नहीं, वे उलटे उन महान् दुःखोंके कारणोंको ही और उत्पन्न कर लेते हैं।
भावार्थ-नारकियोंका भवधारक शरीर तो हुंडक संस्थानादिके कारण अशुभ होता ही है, परन्तु विक्रियाके द्वारा होनेवाला उत्तरवैक्रियशरीर भी अशुभतर ही हुआ करता है। क्योंकि उनके वैसे ही नामकर्मका उदय पाया जाता है, और वहाँके क्षेत्रका माहात्म्य भी इसी प्रकारका है।
उक्त प्रकारके दुःखोंके सिवाय और भी दुःख नारकोंको हुआ करते हैं। उनमें से पारस्परिक दुःखको बतानेके लिये सूत्र कहते हैं:
सूत्र-परस्परोदीरितदुःखाः॥४॥ भाष्यम्-परस्परोदीरितानि दुःखानि नरकेषु नारकाणां भवन्ति । क्षेत्रस्वभावजनिताञ्चाशुभात्पुद्गलपरिणामादित्यर्थः ।
__ अर्थ-उक्त नरकोंमें उत्पन्न होनेवाले जीवोंके आपसमें उदीरित दुःख भी हुआ करते हैं। वे नारकी आपसमें एक दूसरेको देखकर विभंगज्ञानके निमित्तसे विरुद्ध परिणामोंको
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