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________________ ११६ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् [ द्वितीयोऽध्यायः सूत्र - - तदादीनि भाज्यानि युगपदेकस्या चतुर्भ्यः ॥ ४४ ॥ भाष्यम् - ते आदिनी एषामिति तदादीनि । तैजसकार्मणे यावत्संसारभाविनी आदि कृत्वा शेषाणि युगपदेकस्य जीवस्य भाज्यान्या चतुर्भ्यः । तद्यथा - तैजसकार्मणे वा स्याताम्, तेजसकार्मणैौदारिकाणि वा स्युः, तैजसकार्मणवैक्रियाणि वा स्युः, तेजसकार्मणौदारिकवैकियाणि वा स्युः, तैजसकार्मणौदारिकाहारकाणि वा स्युः । कार्मणमेव वा स्यात्, कार्मणौदारिके वा स्याताम्, कार्मणवैक्रिये वा स्याताम् कार्मणौदा रिकवैक्रियाणि वा स्युः, कार्मणौदारिकाहारकाणि वा स्युः, कार्मणतैजसौदारिकवैक्रियाणि वा स्युः, कार्मणतैजसौदारिकाहारकाणि वा स्युः न तु कदाचित् युगपत् पञ्च भवन्ति, नापि चैकियाहारके युगपद्भवतः स्वामिविशेषादिति वक्ष्यते । अर्थ — तैजस और कार्मण ये दो शरीर सम्पूर्ण संसार में रहनेवाले हैं । अतएव इन दोनोंको आदि लेकर ये दोनों हैं, आदिमें जिनके ऐसे शेष औदारिक आदि शरीर एक जीवके एक कालमें चार तक हो सकते हैं । भावार्थ- " तदादीनि " इस शब्दका दो प्रकारसे विग्रह हो सकता है, एक तो “ ते आदिनी एषाम् ” यह, जैसा कि यहाँ पर भाष्यकारने किया है; दूसरा “ तत् - कार्मणम् आदि येषाम् ” यह, क्योंकि तैजसके विषय में प्रत्याख्यान और अप्रत्याख्यान ये दो पक्ष हैं । भाष्यकारने जो विग्रह किया है, उसके " ते आदिनी " इस द्विवचनान्त पदसे तैजस और कार्मण ये दोनों उनको विवक्षित हैं, यह बात स्पष्ट होती है । इसी लिये उन्होंने इन दोनों को ही मेढीभूत करके “ तैजसकार्मणे यावत्संसारभाविनी " इस वाक्यके द्वारा अपना अभिप्राय खुलासा कर दिया है । अतएव आचार्यको तैजसशरीरका अप्रत्याख्यान पक्ष ही इष्ट है, ऐसा प्रकट होता है । इस अप्रत्याख्यान पक्षमें पाँच शरीरोंमेंसे दोसे चार तक एक समय में एक जीवके होनेवाले शरीरोंके पाँच विकल्प होते हैं । किंतु प्रत्याख्यान पक्षमें सात विकल्प होते हैं । क्योंकि इस पक्षमें तैजसशरीरका अभाव मानकर भी लब्धिकी अपेक्षा सद्भाव भी माना है। अप्रत्याख्यान पक्षमें यह बात नहीं है, क्योंकि इस पक्षमें तैजसशरीर सभी जीवोंके और सभी समय में प्रायः पाया ही जाता है । प्रायः इसलिये कि विग्रहगतिमें आचार्यको भी वह लब्धिनिमित्तक ही इष्ट है। विग्रहगतिके सिवाय अन्य सम्पूर्ण अवस्थाओं में वह विना लब्धि के ही सर्वत्र सर्वदा अभीष्ट है । अतएव विकल्पों के प्रयोग यहाँपर भाष्यकारने प्रत्याख्यान और अप्रत्याख्यान दोनों ही पक्षोंको लेकर दिखाये हैं । उनमें से पहले अप्रत्याख्यान पक्षके पाँच विकल्पों को यहाँ पर दिखाते हैं ---- 1 १ -यदि किसी जीव के एक साथ दो शरीर होंगे, तो तैजस और कार्मण ये ही दो होंगे । २ - यदि तीन शरीर किसी जीवके एक साथ पाये जायेंगे, तो या तो तैजस कार्मण १ - आदिनौ इति पाठान्तरम् । २ – भाविनौ इति क्वचित् पाठः । जिनके मत में तैजसशरीर नहीं माना है वे " तत् आदि येषां " ऐसी निरुक्ति करते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001680
Book TitleSabhasyatattvarthadhigamsutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorKhubchand Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1932
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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