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विषय-सूची।
पृथक्त्ववितर्क और एकत्ववितर्क शुक्लध्यानका वीचारका स्वरूप स्वरूप
४२६ सम्यग्दृष्टियोंकी निजराका तरतम भाव अर्थात् शुक्लध्यानोंके स्वामी
४२७ सम्यग्दृष्टिमात्रके कर्मोकी निर्जरा एक सरीखी १ पृथक्त्ववितर्क २ एकत्ववितर्क ३ सूक्ष्म- होती हैं, अथवा उसमें कुछ विशेषता है ? ४३० क्रियाप्रतिपाति ४ व्युपरतक्रियानिवृत्ति शुक्ल- निग्रन्थोंके पांच विशेष भेद- १ पुलाक, २ ध्यानके ४ भेदोंका स्वरूप
बकुश ३ कुशील ४ निग्रंथ ५ स्नातकस्वरूप ४३१ ये चारों ध्यान किस प्रकारके जीवोंके हुआ
सामान्यतया उपर्युक्त सभी निग्रंथ कहे जाते करते हैं ?
४२८
हैं, परन्तु संयम, श्रुत. प्रतिसेवना, तीर्थ, लिंग चारों ध्यानोंमेंसे आदिके दो ध्यानोंकी
लेझ्या उपपात स्थानके भेदसे सिद्ध करनाचाहिये४ ३२ विशेषता
४२८ दूसरे एकत्ववितर्कशुक्लध्यानका वर्णन ४२८
संयम श्रुत, प्रतिसेवना आदिका स्वरूप ४३३ वितर्क किसको कहते हैं ?
४२९ इति नवमोऽध्यायः ॥ ९ ॥
१० दशम अध्याय मोक्षतत्त्व वर्णन
क्षेत्र, काल, गति, लिंग, तीर्थ, चारित्र, प्रत्येकमोक्षकी प्राप्ति केवलज्ञानपूर्वक होती है, बुद्धबोधित, ज्ञान, अवगाहना, अन्तर, केवलज्ञानकी उत्पत्तिके कारण
४३७ संख्या, और अल्पबहुत्वका स्वरूप ४४५ कर्मोके अत्यन्त क्षय होनेके कारण ४३८ ग्रंथ-महात्म्य
४६१ मोक्षका स्वरूप
४३९
आमर्शोषधित्व, विद्युडौषधित्व, सर्वोषधित्व, अन्य कारण जिनके अभावसे मोक्षकी सिद्धि
शाप और अनुग्रहकी सामर्थ्य उत्पन्न करनेवाली होती है
वचनसिद्धि, ईशव, वशित्व, अवधिज्ञान,
शारीरविकरण, अंगप्राप्तिता, अणिमा, लघिमा, सकल कर्मोके अभावसे मोक्ष हो जानेपर
और महिमा आदि ऋद्धियोंका स्वरूप ४६१ उस जीवकी क्या गति होती है ? वह
उपसंहार-ग्रंथका सार किस प्रकार परिणत होता है ? ४४०
प्रशस्ति । सिध्यमान गति-ऊर्ध्वगमनके हेतुके कारण ४४१ ग्रंथकर्ता श्रीउमास्वातिकी गुरुपरम्परापूर्वप्रयोग, संग, बंध, आदिका वर्णन ४४२
ग्रंथकर्ताके ग्रंथ रचनेका स्थान, माता, मुक्तिके कारणोंको पाकर जो जीव मुक्त हो ।
पिता, गोत्रका परिचय और इस उच्च जाते हैं, वे सभी जीव स्वरूपकी अपेक्षा आगमके रचनेका कारण समान हैं ? अथवा असमान ? ४४५ इति दशमोऽध्यायः ॥ १० ॥
श्रीरायचन्द्रजैनशास्त्रमालाका परिचय और ग्रंथ-सूची
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