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________________ सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ४२० १ उत्तम क्षमा २ मार्दव, ३ आर्जव, ४ शौच, ५ १ प्रायश्चित्त, २ विनय, ३ वैयावृत्त्य, ४ सत्य, ६ संयम, ७ तप ८ त्याग, ९ आकिञ्चन्य, स्वाध्याय, ५ व्युत्सगे, और ६ ध्यान, और १० ब्रह्मचर्य, दस धर्मोका स्वरूप ३८५ छह अन्तरंग तपोंका वर्णन ४१५ १ अनित्य २ अशरण, ३ संसार,४ एकत्व, अन्तरंगतपके भेद ४१५ ५ अन्यत्वानुप्रेक्षा ६ अशुचित्वानुप्रेक्षा ७ । प्रायश्चित्तके ९ भेद-१ आलोचन, २ प्रतिआस्रपानुप्रेक्षा ८ संवरानुप्रेक्षा ९ निजरानु- क्रमण, ३ तदुभय, ४ विवेक, ५ व्युत्सर्ग, प्रेक्षा १० लोकचिन्तवन ११ बोधिदुर्लम १२ । ६ तप, ७ छेद, ८ परिहार, ९ उपस्था- . धर्मस्वारव्याततत्त्वानुप्रेक्षाओंका स्वरूप ३९२ पनका स्वरूप ४१६ परिषह सहन क्यों करना चाहिए ४०५ विनयतपके ४ भेद- १ ज्ञान, २ दर्शन, ३ १ क्षुधा २ पिपासा ३ शीत ४ उष्ण, ५ चारित्र और ४ उपचार विनयका स्वरूप ४१८ दंशमशक ६ नाम्न्य ७ अरति ८ स्त्री ९ | वैयावृत्त्यतपके १० भेद- १ आचार्यवैयावृत्य चर्या १० निषद्या ११ शय्या १२ आक्रोश २ उपाध्यायवै० ३ तपस्विवै० ४ शैक्षकवै० १३ वध १४ याचना १५ अलाभ १६ ५ ग्लानवै० ६ गणवै०, ७ कुलवैया०, रोग १७ तृणस्पर्श १८ मल १९ सत्कार, ८ संघवैया०, ९ साधुवै० १० समनोज्ञवै० २० प्रज्ञा २१ अज्ञान, २२ अदर्शन बाईस का स्वरूप परीषहोंका वर्णन स्वाध्याय तपके ५ भेद- १ वाचना, २ किस किस कर्मके उदयसे कौन कौनसी परी- प्रच्छन, ३ अनुप्रेक्षा, ४ आम्नाय ५ धर्मोषहें होती हैं ? कितनी कितनी परीषह किस पदेशका स्वरूप किस गुणस्थानवी जीवके पाई जाती हैं ? ४०७ व्युत्सर्गतपके २ भेद- १ बाह्य, २ आभ्यन्तर जिनभगवानमें ११ परीषहोंकी संभवता ४०७ व्युत्सर्गका स्वरूप ४२१ बादरसंपराय नवमें गुणस्थानतक-सभी बाईसों ध्यानतपका स्वरूप परीषह संभव है ध्यानके कालका उत्कृष्ट प्रमाण ३२२ किस किस कर्मके उदयसे कौन कौनसी परीषह आत्ते, रौद्र, धर्म, और शुक्लध्यानका स्वरूप ४२३ होती हैं ? धर्म और शुक्लध्यान मोक्षके कारण है ४२३ दर्शनमोहसे अदर्शनपरीषह, अंतरायके उदयसे अलाभपरीषह आतध्यानके ४ भेद- १ अनिष्टसंयोग, २ • चारित्रमोहनीयकर्मके उदयसे होनेवाली परीषहें ४०९, इष्टवियोग, ३ वेदनाचिंतन, ४ निदानका वेदनीयकर्मके उदयसे होनेवाली परीषहें ४१० स्वरूप ४२३ बाईस परीषहोंमेंसे एक जीवके एक कालमें ! दूसरे आत्तध्यानका स्वरूप ४२४ कमसे कम कितनी और अधिकसे अधिक तीसरे आतध्यानका स्वरूप ४२४ कितनी होती हैं ? ४१० चौथे आर्तध्यानका स्वरूप ४२४ पांच प्रकारका चारित्र-सामायिक, छेदोप- आर्तध्यानके स्वामी ४२५ स्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसंपराय, रौद्रध्यानके भेद और उनके स्वामी ४२५ यथाख्यात संयमका वर्णन ४११ धर्मध्यानके ४ भेद- १ आज्ञाविचय २ . १ अनशन, २ अवमोदर्य, ३ वृत्तिपरिसंख्यान, अपायविचय ३ विपाकविचय ४ संस्थान४ रसपरित्याग, ५ विविक्तशय्यासन, ६ विचयका स्वरूप कायक्लेश छह बाह्यतपोंका स्वरूप ४१२ धर्मध्यानके विषयमें एक विशेष बात ४२६ ४२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001680
Book TitleSabhasyatattvarthadhigamsutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorKhubchand Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1932
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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