________________
विषय-सूची।
व्रतीके मेद
३३४ ब्रह्मचर्यव्रतके अतीचार अगारी और अनगार में अन्तर औ विशेषता ३३४ परिग्रहप्रमाण व्रतके अतीचार दिखत, देशवत, अनर्थदण्डवत, सामायिकवत दिखतके अतीचार पौषधोपवास, उपभोगपरिभोगव्रत. और
देशव्रतके अतीचार अतिथि संविभागवतका स्वरूप
अनर्थदंडवतके अतीचार सल्लेखनाव्रतका स्वरूप
सामायिकव्रतके अतीचार शंका, कांक्षा, विचिकित्सा, अन्यदृष्टिप्रशंसा,
पौषधोपवासव्रतके अतीचार • और अन्यदृष्टिसंस्तव, सम्यग्दर्शनके पाँच अतीचारोंका स्वरूप
भोगोपभोगवतके अतीचार अहिंसा आदि व्रतों और सप्तशीलोंके पांच
अतिथिसंविभागके अतीचार पाँच अंतीचार
सल्लेखनावतके अतीचार अहिंसावतके अतीचार
दानका स्वरूप सत्याणुव्रतके अतीचार
३४२ दान में विशेषताके कारण अचौर्याणुव्रतके अतीचार
इति सदमोऽध्यायः ॥ ७ ॥
My My MY MY MY 000000
३४८ ३४९
३४९
mmm
८ अष्टम अध्याय । बंधतत्त्वका वर्णन
| गोत्रकर्मके २ भेदोंका स्वरूप बंधके ५ कारण मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, प्रकृतिबंध-अन्तरायकर्मके पांच भेदोंका स्वरूप ३७३ कषाय और योगका स्वरूप
स्थितिबंधकी उत्कृष्ट स्थिति बंध किसका होता है ? किस तरहसे होता मोहनीयकर्मकी उत्कृष्ट स्थिति
३७४ है ? और उसके स्वामी कौन है ? ३५४
३७५ कामणवर्गणाओंका ग्रहणरूप बंधका वर्णन- ३५ आयुकर्मकी स्थिति।
द७५ ग्रहणरूपबंधके प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और
वेदनीयकर्मकी स्थिति
३७५ प्रदेशबंध ४ भेदोंका वर्णन
गोत्रकमकी जघन्य स्थिति
३७५ प्रकृतिबंधके भेद
बाकी कर्मोकी जघन्य स्थिति
३७५ ,, उत्तर मेद
अनुभागबंधका लक्षण ज्ञानावरणके पाँच मेद
कर्मका विपाक किस रूपमें होता है ।। दशनावरणके ९ भेद
नामके अनुरूप विपाक हो जानेके अनन्तर वेदनीयकर्मके २ भेद ३५७ उन कर्मोका क्या होता है
३७७ मोहनीयकर्मके २८ भेदोंका वर्णन ३५८ प्रदेशबंधका वर्णन आयुष्कप्रकृतिबंधके ४ भेद
३६५ पुण्यरूप और पापरूप प्रकृतियोंका विभाग ३७९ नामकर्मके ४२ भेदोंका स्वरूप ३६७ इति अष्टमोऽध्यायः ॥ ८ ॥
९ नवम अध्याय। संवरतत्त्व और निर्जरातत्त्व वर्णन | संवर-सिद्धिका कारण-तपका स्वरूप
३८१ गुप्तिका लक्षण
३८२ संवरका लक्षण
३८११ इर्या २ भाषा ३ एषणा ४ आदाननिक्षेपण किन किन कारणोंसे कर्मोका आना रुकता है । ३८१, ५ उत्सर्ग पांच समितियोंका स्वरूप ३८३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org