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________________ सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् एक स्निग्ध परमाणुका दूसरे रूक्ष परमाणुके । गुणका लक्षण २९५ साथ बंध हुआ. इनमेंसे कौन परिणमन परिणामका स्वरूप २९६ करेगा। और कौन करावेगा? परिणामके २ भेदोंका स्वरूप २९६ द्रव्यका लक्षण २९२ रूपी-मूर्त पदार्थों का परिणाम अनादि है, कालद्रव्यका स्वरूप, काल भी क्या पाँच या आदिमान् ? २९६ द्रव्योंसे भिन्न छटा द्रव्य है ? अथवा पाँचोंमें ही अन्तर्भूत है ? २९३ आदिमान् परिणामका स्वरूप २९७ कालका विशेष स्वरूप इति पञ्चमोऽध्यायः ॥५॥ ६ छहा अध्याय । आस्रवतत्त्वका वर्णन दर्शनमोहके बंधके कारण ३११ आस्रव किसको कहते हैं ? योगका स्वरूप- २९८ चारित्रमोहकर्मके बंधके कारण ३१२ योगके पहले भेद-शुभका स्वरूप २९९ नरकायुके आस्रवके कारण ३१२ दूरे भेद-अशुभ योगका स्वरूप ३०० तिर्यगायुके बंधके कारण ३१२ योगके स्वामिभेदकी अपेक्षासे भेद ३०० मनुष्यायुके आस्रवके कारण ३१२ साम्परायिकआस्रवके भेद ३०१ सामान्यसे सभी आयुके आस्रवके कारण ३१२ साम्परायिकआस्रवके भेदों में जिन जिन कार- देवायुके आस्रवके कारण ३१३ णोंसे विशेषता है, उनका वर्णन __३०३ अशुभनामकर्मके बंधके कारण ३१४ अधिकरण और उसके भेदोंका स्वरूप शुभनामकर्मके आस्रवके कारण ३१४ भावाधिकरण जीवाधिकरणका स्वरूप तीर्थकरकर्मके आस्रवके कारण-षोडशकारणअजीवाधिकरण और उनके भेद भावनाओंका स्वरूप ज्ञानावरण दर्शनावरणकर्मके कारणभूत आत्र- नीचगोत्रके आस्रवके कारण के विशेष भेद ३०८ उच्चगोत्रकर्मके आस्रवके कारण ३१७ असद्वद्यबंधके कारण ३०९ अन्तरायकमके आस्रवके कारण ३१७ सद्वेद्यकर्मके बंधके कारण इति षष्ठोऽध्यायः ॥ ६ ॥ ३१६ ३१० ७ सप्तम अध्याय। व्रतोंका स्वरूप, व्रती कितको समझना चाहिए ३१९ मत्री, प्रमोद, कारुण्य, माध्यस्थ्यभावनाका त्यागरूप व्रत कितने प्रकारका है ? और उसका स्वरूप स्वरूप क्या है? ३१९ संवेग और वैराग्यकी सिद्धिके लिये जगत पांच पापोंके त्यागरूप व्रतोंकी पाँच पाँच और लोकस्वरूपका चिन्तवन करना चाहिए ३२९ भावनाओंका स्वरूप ३२० हिंसाका लक्षण ३३० उपर्युक्त भावनाओंके सिवाय सामान्यतया अनृत-असत्यका लक्षण ३३० सभी व्रतोंके स्थिर करनेवाली भावनाओंका चोरीका लक्षण ३३२ स्वरूप अब्रह्म-कुशीलका लक्षण ३३२ हिंसा आदि ५ पापोंमें दुःखही दुःख है। परिग्रहका स्वरूप ३३३ अतएव इनका त्याग ही करना श्रेयस्कर है ३२४ व्रती किसको कहते हैं ? ३३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001680
Book TitleSabhasyatattvarthadhigamsutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorKhubchand Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1932
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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