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________________ विषय-सूची। बंध , सूक्ष्म , स्थूल , संस्थान, २७२ छाया , ५पंचम अध्याय। चौथे अध्याय तक ते जीवतत्त्वका निरूपण पुद्गलके धर्महआ, अब इस अध्यायमें अजीवतत्त्वका " पर्याय २७१ वर्णन है, कालद्रव्यको छोड़कर शेष धर्मादिक शब्दस्वरूप २७१ द्रव्योंका स्वरूप २७१ धर्मादिक चारोंकी द्रव्यता सूत्र द्वारा अभीतक २७१ अनुक्त है, अतएव इनके विषयमें सन्देह २७१ ही रह सकता है, कि ये द्रव्य हैं ? अथवा पर्याय हैं ? भेद , २७२ ये द्रव्य अपने स्वभावसे च्युत होते हैं, या तम , नहीं ? पाँचको यह संख्या कभी विघटित २७२ होती है या नहीं ? ये पाँचों ही द्रव्य मूत्ते आतप ,, २७२ हैं अथवा अमूत? उद्योत-स्वरूप २७२ धर्मादिक द्रव्य अरूपी हैं, ऐसे उपयुक्त वर्णनसे पुद्गल भी अरूपी ठहरता है, उसका निषेध, २४९ पुद्गलके २ भेद. अणु और स्कंधका वर्णन २७४ द्रव्योंकी और भी विशेषतायें २५० ये दो भेद होने किस कारणसे हैं ? २७५ धर्मादिकके बहुत प्रदेश हैं. परन्तु वे कितने स्कंधों की उत्पत्तिके ३ कारणोंका वर्णन २७५ कितने हैं ? उनकी इयत्ता-प्रदेशोंकी संख्या २५३ परमाणुओंकी उत्पत्ति कैसे होती है ? २७६ जीवके भी उतने ही प्रदेश माने हैं, जितने अचाक्षुष स्कंधका चाक्षुष बननेका कारण २७६ कि धर्म द्रव्य और अधर्मदव्यके हैं, अतएव सत्का लक्षण २७७ उसके भी प्रदेशोंकी संख्याका नियम उत्पात व्यय और ध्रौव्यका स्वरूप २७८ आकाशद्रव्यके प्रदेशोंकी इयत्ता विरोधका परिहार और परिणामी नित्यत्वका पुद्गलद्रव्यके प्रदेशोंकी संख्या २८० परमाणुके प्रदेश नहीं होते २५६ जो नित्य है, उसीको अनित्य अथवा जो अनित्य धर्मादिक द्रव्योंका आधार २५६ है, उसीको नित्य कैसे कहा जा सकता है ? २८२ धम अधम द्रव्यका अवगाह लोकर्म कसा है ! २५६ अनेकान्तका स्वरूप पुद्गलद्रव्यके अवगाहका स्वरूप २५७ सप्तभंगीका स्वरूप २८६ जीवद्रव्यका अवगाह कितने क्षेत्रमें होता है ? २५८ जिन पुद्गलोंका बंध हो जाता है, उन्हींका यदि एक जीवकी अवगाहना लोकाकाशके असंख्या संघात होता है, तो फिर बंध किस तरह होता है ?९८८ तवें भागमें कैसे है ? एक जीवका लोकप्रमाण प्रदेश है, इससे सर्वलोगमें व्याप्त चाहिए ? । पुद्गलोंके बंधमें उनके स्निग्धत्व और रूक्षत्व इन प्रश्नोंका उत्तर गुणको कारण बताया, परन्तु क्या यह एकान्त धर्मादिक द्रव्योंका लक्षण है, कि जहाँपर ये गुण होंगे, वहाँपर नियमसे आकाशका उपकार बंध हो ही जायगा, या इसमें भी कोई पुद्गलद्रव्यका उपकार २६३, विशेषता है ? २८९ कार्यद्वारा पुद्गलका उपकार २६४ स्निग्ध रूक्षगुणोंकी समानताके द्वारा जो सदृश जीवद्रव्यका उपकार २६६ हैं, उनका बंध नहीं हुआ करता २९० कालकृत उपकार २६७ सभी सदृश पुद्गलोंका बंध नहीं होता, तो पुगलके गुण २७० फिर बंध किनका होता है ? २९० २५५ २८३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001680
Book TitleSabhasyatattvarthadhigamsutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorKhubchand Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1932
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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