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सूत्र ३४-३५-३६ ।]
सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ।
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इन तीन प्रकारके जीवोंसे जो जरायुज हैं, वे अभ्यर्हित हैं, उनमें क्रिया और आरम्भक शक्ति अधिक पाई जाती है, तथा उनमेंसे किसी किसीमें महान् प्रभाव और मोक्षमार्गका फल भी पाया जाता है, अतएव उसका सबसे पहले ग्रहण किया है । जरायुजके अनन्तर अण्डज --- का ग्रहण इसलिये किया है, कि वह पोतकी अपेक्षा अभ्यर्हित होता है ।
क्रमानुसार उपपादजन्मके स्वामियोंको बतानेके लिये सूत्र कहते हैं । - सूत्र - नीरकदेवानामुपपातः ॥ ३५ ॥
भाष्यम् - नारकाणां देवानां चोपपातो जन्मेति ।
अर्थ — नरकगति और देवगतिवाले जीवोंका उपपात जन्म होता है ।
भावार्थ - उपपात शब्द का अर्थ ऊपर बताया जा चुका है । इस उपपातजन्मके स्वामी दो गतिवाले जीव-नारक और देव हैं । इस सूत्रका अभिप्राय भी दुतरफा नियम करने का ही समझना चाहिये । अर्थात् एक तो यह कि - नारक देवोंके उपपातजन्म ही होता है, और दूसरा यह कि नारक देवोंके ही उपपातजन्म होता है ।
क्रमानुसार सम्मूर्छन-जन्मके स्वामियोंको बतानेके लिये सूत्र कहते हैं:
सूत्र - शेषाणां सम्मूर्छनम् ॥ ३६ ॥
भाष्यम् – जराखण्डपोतजनारकदेवेभ्यः शेषाणां सम्मूर्छनं जन्म । उभयावधारणं चात्र भवति । - जरायुजादीनामेव गर्भः, गर्भ एव जरायुजादीनाम् । नारकदेवानामेवोपपातः, उपपात एव नारक देवानाम् । शेषाणामेव सम्मूर्छनम्, सम्मूर्छनमेव शेषाणाम् ॥
अर्थ — जरायुज अण्डज पोतज नारक और देव इतने जीवोंको छोड़कर बाकी के जीवों के सम्मूर्छन - जन्म होता है । यहाँपर जन्मके स्वामियोंको बतानेका जो प्रकरण उपस्थित है, उसमें दोनों ही तरफ से नियम समझना चाहिये । - जरायुजादिकके ही गर्भ - जन्म होता है, और जरायुजादिकके गर्भ - जन्म ही होता है । इसी तरह नारक देवोंके ही उपपातजन्म होता है, और नारक देवोंके उपपातजन्म हीं होता है । तथा बाकीके जीवों के ही सम्मूर्च्छनजन्म होता है, और बाकीके जीवोंके सम्मूर्छन - जन्म ही होता है ।
भावार्थ - ऊपर गर्भ और उपपातजन्मके जो स्वामी बताये हैं, उनके सिवाय समस्त संसारी जीवोंके सम्मूर्छन – जन्म ही होता है, तथा सम्मूर्छन - जन्म इन शेष संसारी जीवोंके ही हुआ करता है । ऐसा दुतरफा नियम समझना चाहिये । तीन प्रकारके जन्मोंके
१ - दिगम्बर सिद्धान्तमें अभ्यर्हित और अल्पाच्तर होनेसे नारक शब्द के पहले देव शब्दका पाठ माना है । किंतु श्रीसिद्धसेनगणी कहते हैं, कि ऐसा न करके नारक शब्दके पहले पाठ करनेसे जन्म दुःखका कारण हैं, और वह नारकों में प्रकृष्टरूपसे है, इस अर्थके ज्ञापन करानेका अभिप्राय है ।
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