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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
[ द्वितीयोऽध्यायः
दोनों ही पुद्गल गर्भ-जन्मके आधार हैं, अतएव उसकी मिश्र योनि कही जाती है। इसी प्रकार अन्य योनियोंके विषयमें भी समझना चाहिये । जिस कायकी जातिके जितने भेद हैं, उतने ही उसकी योनिके भेद होते हैं, जैसे कि पृथिवीकायके सात लाख । इसी तरह अपनी अपनी जातिके भेदसे अन्य योनियोंके भेद समझने चाहिये। किंतु वे भेद अपने मूलभेदको छोड़कर नहीं रहा करते, यह बात ध्यानमें रखनी चाहिये।
ऊपर जन्मके तीन भेद बताये हैं । उनके आधाररूप योनियोंके भेद प्रभेद गिनाये, किंतु अभीतक यह नहीं बताया, कि किस किस जीवके कौन कौनसा जन्म होता है-उन जन्मोंके स्वामी कौन हैं ? अतएव इस बातको बतानेके लिये ही आगेका सूत्र कहते हैं
सूत्र-जराय्वण्डपोतजानां गर्भः ॥ ३४ ॥ भाष्यम्-जरायुजानां मनुष्यगोमहिषाजाविकाश्वखरोष्ट्र मृगचमरवराहगवयसिंह व्याघ्रःद्वीपिश्वशृगालमार्जारादीनाम् । अण्डजानां सर्पगोधाकृकलाशगृहकोकिलिकामत्स्यकूर्मनक्रशिशुमारादीनां पक्षिणां च लोमपक्षाणां हंसचाषशुकगृधश्येनपारावतकाकमयूरमद्गुबकबलाकादीनां । पोतजानां शल्लकहस्तिश्वाविल्लापकशशशारिका नकुलमूषिकादीनां पक्षिणां च चर्मपक्षाणां जलूका बल्गुलिभारण्डपक्षिविरालादीनां गर्भो जन्मेति । ___ अर्थ-मनुष्य गौ बैल भैंस बकरी भेड़ घोड़ा गधा ऊंट हिरण चमरी गौ शकर नीलगाय सिंह व्याघ्र भालू गेंडा कुत्ता शृगाल बिल्ली आदिक जीव जरायुज हैं । सर्प गोह गिरगिट या छिपकली तथा गृहकोकिलिका मछली कछुआ मगर घडियाल आदि जीव अण्डज हैं । एवं लोमपक्षवाले पक्षियोंमें हंस नीलकण्ठ तोता गीध बाज कबूतर कौआ मोर टिट्टिभ बक बलाका आदि जीव भी अण्डज ही हैं। और सेही हस्ती श्वाविल्लापक ( चरक ) खरगोश शारिका नकुल मषक आदि जीव तथा पक्षियोंमें चर्मपक्षवाले जीव और जलका बल्गली भारण्डपक्षी विडाल
आदि जीव पोतन हैं । इन तीनों ही प्रकारके जीवोंका गर्भ-जन्म हुआ करता है। ___ भावार्थ-जरायुज अण्डज और पोतज इन तीन प्रकारके जीवोंका उपर्युक्त तीन तरहके जन्मोंमेंसे गर्म-जन्म हुआ करता है । यह सूत्र दोनों ही प्रकारके नियमोंको दिखाता है, अर्थात् इन तीन तरहके जीवोंका गर्भ-जन्म ही होता है, एक तो यह, दूसरा यह कि इन तीन तरहके जीवोंका ही गर्भजन्म हुआ करता है।
जरायु नाम जेरका है, जो कि गर्भमें जीवके शरीरके चारों तरफ जालकी तरह लिपटा रहता है । माता पिताका रज वीर्य नखकी त्वचाके समान कठिनताको धारण करके उस गर्भस्थ जीवके शरीरके चारों तरफ जो गोल आवरण बन जाता है, उसको अण्ड कहते हैं। शरीरके अवयवोंके पूर्ण होनेपर जिसमें चलने फिरनेकी सामर्थ्य प्राप्त हो जाती है, उसको पोत कहते हैं ।
१-दिगम्बर सिद्धान्तमें पोतजकी जगह पोत शब्दका ही पाठ माना है ।
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