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________________ 56/श्रावकाचार सम्बन्धी साहित्य दशवीं और ग्यारवहवीं प्रतिमा का वर्णन करके अन्त में छ: आवश्यकों का निरूपण किया गया है। इस कृति के उक्त वर्णन से परिलक्षित होता हैं कि आचार्य सकलकीर्ति संस्कृत भाषा के प्रौढ़ विद्वान थे। इनके संस्कृत में रचित २६ ग्रन्थ और राजस्थानी में रचित ८ ग्रन्थ उपलब्ध है। मूलाचारप्रदीप में मुनिधर्म का और प्रस्तुत श्रावकाचार में श्रावकधर्म का विस्तार से वर्णन किया है जिससे ज्ञात होता है कि ये आचार शास्त्र के महान विद्वान थे। सिद्धांतसारदीपक, तत्त्वार्थसारदीपक, कर्मविपाक और आगमसार आदि करणानुयोग और द्रव्यानुयोग के ग्रन्थ हैं। शान्तिनाथ, मल्लिनाथ और वर्धमानचरित आदि प्रथमानुयोग के ग्रन्थ हैं। इनके अतिरिक्त पांचपरमेष्ठीपूजा, गणधरवलयपूजा आदि अनेक पूजाएँ और समाधिमरणोत्साहदीपक आदि रचनाएँ इनकी बहुश्रुतता के परिचायक है। भव्यधर्मोपदेश-उपासकाध्ययन (सं.) यह रचना श्री जिनदेव की है।' इसकी भाषा संस्कृत है। इसमें कुल ३६५ श्लोक हैं। इस श्रावकाचार में छह परिच्छेद है। इसका रचना समय विचारणीय है। इस श्रावकाचार के प्रथम परिच्छेद में भ. महावीर का विपुलाचल पर पदार्पण, राजा श्रेणिक का वन्दनार्थ गमन, धर्मोपदेशश्रवण और इन्द्रभूतिगणधर द्वारा श्रावकधर्म का प्रारम्भ कराया गया है। गणधरदेव ने ग्यारह प्रतिमाओं का निर्देश किया है, उसमें दर्शन प्रतिमाधारी के लिए अष्ट मूलगुणों का पालन, रात्रिभोजन और सप्त व्यसन सेवन का त्याग आवश्यक बताया गया है। दूसरे परिच्छेद में जीवादिक तत्त्वों का वर्णन किया गया है। तीसरे परिच्छेद में जीव तत्त्व की आयु, शरीर-अवगाहना, कुल, योनि आदि के द्वारा विस्तृत विवेचन किया गया है। चौथे परिच्छेद में व्रत-प्रतिमा के अन्तर्गत श्रावक के बारह व्रतों का और सल्लेखना का संक्षिप्त वर्णन है। पाँचवें परिच्छेद में सामायिकप्रतिमा के वर्णन के साथ ध्यान पद्धति का वर्णन है। छठे परिच्छेद में पौषधप्रतिमा का विस्तार से और शेष प्रतिमाओं का संक्षेप से वर्णन किया गया है। अन्त में २५ पद्यों की प्रशस्ति दी गई है। भावसंग्रहगत-श्रावकाचार (प्रा.) ___ 'भावसंग्रह' नामक इस कृति की रचना श्रीदेवसेन ने की है। यह कृति प्राकृत पद्य में है। इतिहासज्ञों ने देवसेन रचित ग्रन्थों का रचनाकाल वि.सं. की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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