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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/55
आगे देवपूजानादि कर्त्तव्यों को नित्य करने की प्रेरणा दी गई है। चारों दानों को देने का महत्त्व बताया गया है। अन्त में जिनचैत्य और चैत्यालयों के निर्माण की प्रेरणा दी है और कहा है कि उनके होने पर ही पूजन-अभिषेक आदि पुण्य कार्यों का होना संभव है।
इस प्रकार इसमें श्रावक के कर्त्तव्यों का विधान संक्षेप में किया गया है। प्रश्नोत्तर-श्रावकाचार
यह श्रावकाचार' आचार्य श्री सकलकीर्ति का है। यह कृति संस्कृत पद्य में है। इसकी श्लोक संख्या २८८० है और यह सभी श्रावकाचारों से बड़ा है। शिष्य के प्रश्न करने पर उत्तर देने के रूप में इसकी रचना की गई है। इसका रचनाकाल विक्रम की १५ वीं शती है।
इस ग्रन्थ में चौबीस परिच्छेद हैं। इसके प्रथम परिच्छेद में धर्म की महत्ता, दूसरे में सम्यग्दर्शन और उसके विषयभूत सप्त तत्वों का एवं पुण्य-पाप का विस्तृत वर्णन, तीसरे में सत्यार्थ देव, गुरु, धर्म और कुदेव, कुगुरु, कुधर्म का विस्तृत वर्णन है।
चौथे परिच्छेद से लेकर दशवें परिच्छेद तक सम्यक्त्व के आठों अंगों में प्रसिद्ध पुरुषों के कथानक दिये गये हैं। ग्यारहवें परिच्छेद में सम्यक्त्व की महिमा का वर्णन है। बारहवें परिच्छेद में अष्ठमूलगुण, सप्तव्यसन, हिंसा के दोषों और अहिंसा के गुणों का वर्णनकर अहिंसाणुव्रत में प्रसिद्ध मातंग का और हिंसा-पाप में प्रसिद्ध धन श्री का कथानक दिया गया है। इसी प्रकार तेहरवें परिच्छेद से लेकर सोलहवें परिच्छेद तक सत्यादि चारों अणुव्रतों का वर्णन और उनमें प्रसिद्ध पुरुषों के तथा असत्यादि पापों में प्रसिद्ध पुरुषों के कथानक दिये गये है।
सतरहवें परिच्छेद में तीनों गुणव्रतों का वर्णन है। अठाहरवें परिच्छेद में देशावगासिक और सामायिक शिक्षाव्रत का तथा उसके ३२ दोषों का विस्तृत विवेचन है। उन्नीसवें परिच्छेद में पोषधोपवास का और बीसवें परिच्छेद में अतिथिसंविभाग का विस्तार से वर्णन किया गया है। इक्कीसवें परिच्छेद में चारों दानों में प्रसिद्ध व्यक्तियों के कथानक हैं। बाईसवें परिच्छेद में समाधिमरण का विस्तृत निरूपण है साथ ही तीसरी, चौथी, पाँचवी और छठी प्रतिमा का स्वरूप बताकर रात्रि भोजन के दोषों का वर्णन किया गया है। तेईसवें परिच्छेद में सातवीं, आठवीं और नवमी प्रतिमा का स्वरूप वर्णन है। चौबीसवें परिच्छेद में
' यह कृति शास्त्रकार में मुद्रित है। इसका सम्पादन-अनुवाद पं. लालारामजी ने किया है। यह कृति 'श्रावकाचार संग्रह' भा. २ में प्रकाशित है।
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