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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/41 उपासकों की अविरत, विरत एवं साधक अवस्थाओं का वर्णन होने से भी इसका उपासकदशा नाम सार्थक सिद्ध होता है। इसमें वर्णित दस श्रावकों के नाम क्रमशः आनन्द, कामदेव, चुलनीपिता, सुरादेव, चुलनीशतक, कुण्डकौलिक, शकडालपुत्र, महाशतक, नन्दिनीपिता और सालिहीपिता है। __प्रस्तुत आगम में प्रमुख रूप से उपर्युक्त दस उपासकों की ऋद्धि-समृद्धि बतायी गई है। इसके साथ ही उनके द्वारा बारह व्रत ग्रहण करने की विधि' का उल्लेख है। आगे उन उपासकों के द्वारा समाधिमरण की साधना किये जाने का वर्णन है तथा उस साधना में उपस्थित उपसगों पर विजय प्राप्त करने का भी उल्लेख है। उपरोक्त सामान्य वर्णन के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि प्रस्तुत अंगसूत्र में भले ही दस उपासकों का जीवन चरित्र विस्तार के साथ उल्लिखित हुआ हो, लेकिन उस जीवन चरित्र का मुख्य आधार बारह व्रतों का ग्रहण करना ही है। क्योंकि व्रत अवस्था में रहते हुए ही समाधिमरण की साधना की जा सकती है। अतः यह आगम गृहस्थ के व्रतों की विधि का सम्यक् निरूपण प्रस्तुत करता है। उपसंहार के रूप में यहाँ यह कहना सर्वथा प्रसंगोचित हैं कि विद्यमान अंगसूत्रों एवं अन्य आगमों में प्रधानतः श्रमण-श्रमणियों के आचारादि का निरूपण ही दिखाई देता है। उनमें उपासकदशांग ही एक ऐसा सूत्र है जिसमें एकमात्र 'गृहस्थ धर्म विधि' के मूल बीज एवं मूल आचार परिलक्षित होते हैं। इस आगम को पढ़ने से तत्कालीन सामाजिक, राजनैतिक, पारिवारिक इत्यादि स्थितियों का भी भलीभाँति परिचय होता हैं। उपासकाचार इसके रचयिता प्रभाचन्द्र भट्टारक है और इसमें ३३ पद्य हैं। उपासकाचार - यह अज्ञातकर्तृक रचना है। इसमें जैन श्रावक की आचार विधियों एवं उनके स्वरूपों, तथा भेद-प्रभेदों का वर्णन हुआ है। यह इस कृति के नाम से ही स्पष्ट है। ' उपासकदशा, मधुकरमुनि सूत्र १३ से ४३, २ जिनरत्नकोश, पृ. ५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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