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________________ 40 / श्रावकाचार सम्बन्धी साहित्य श्रावकधर्म पर भी एक स्वतन्त्र उपासकाध्ययन बनाया है जो अमितगति-श्रावकाचार नाम से प्रसिद्ध है। यह कृति संस्कृत के १४६६ श्लोकों मे ग्रथित है। इनकी अन्य कृ तियों के आधार पर इसका रचना समय विक्रम की ११ वीं शती का उत्तरार्ध सिद्ध होता है। प्रस्तुत कृति १४ परिच्छेदों में विभक्त है। इसमें श्रावक धर्म एवं उनके विधि - अनुष्ठान विस्तार के साथ वर्णित हुए हैं। प्रथम परिच्छेद में धर्म का माहात्म्य, दूसरे में मिथ्यात्व की अहितकारिता और सम्यक्त्व की हितकारिता, तीसरे में सप्ततत्त्व, चौथे में आत्मा के अस्तित्व की सिद्धि और ईश्वर - सृष्टिकर्तृत्व का खंडन किया गया है । अन्तिम तीन परिच्छेदों में क्रमशः शील, द्वादशतप और बारह भावनाओं का वर्णन है। मध्यमवर्ती परिच्छेदों में रात्रिभोजन, अनर्थदण्ड, अभक्ष्यभोजन, तीनशल्य, दान, पूजा और सामायिकादि षट् आवश्यकों का वर्णन है । अन्त में नौ पद्य प्रशस्ति रूप में हैं। इस ग्रन्थ का अध्ययन करने से यह ज्ञात होता है।' कि अमितगति ने गुणव्रतों एवं शिक्षाव्रतों के नामों में उमास्वाति का और स्वरूप वर्णन में सोमदेव का अनुसरण किया है। पूजन के वर्णन में देवसेन का अनुसरण करते हु अनेक ज्ञातव्य बातें कही हैं। इनके अतिरिक्त निदान के प्रशस्त - अप्रशस्त भेद, उपवास की विविधता, आवश्यकों में स्थान, आसन, मुद्रा, काल आदि का वर्णन अमितगति के श्रावकाचार की विशेषता है। यदि संक्षेप में कहें तो इसमें अमितगति के पूर्ववर्ती श्रावकाचारों का दोहन करके उनमें नहीं कहे गये विषयों का प्रतिपादन किया गया है। अमितगति के सुभाषितरत्नसंदोह, धर्मपरीक्षा, पंचसंग्रह, आराधना आदि ग्रन्थ भी उपलब्ध होते हैं। उपासकदशांगसूत्र यह साँतवां अंग आगम है । यह आगम अर्धमागधी प्राकृत में है। इसमें १ श्रुतस्कन्ध, १० अध्ययन और २७७ सूत्र हैं। इसमें भ. महावीर के दस उपासकों के श्रेष्ठ चरित्र वर्णित हुए हैं तथा उनके द्वारा बारह व्रत ग्रहण करने की विधि कही गई है। इसके साथ ही ऋद्धि-समृद्धि की मर्यादा करने का सम्यक् विवेचन है। जैन धर्म में 'उपासक ' शब्द का प्रयोग जैन गृहस्थ के लिए किया गया है। यहाँ 'दशा' शब्द दस की संख्या का सूचक है, अतः उपासकदशांग में दस उपासकों की कथाएँ वर्णित है। यदि 'दशा' शब्द का अर्थ 'अवस्था' करें तो इसमें 9 यह कृति 'अनन्तकीर्ति ग्रन्थमाला' से प्रकाशित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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