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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/659 चाहिए? भोजन करने के बाद क्या करना चाहिए? घटी संख्या को जानने की विधि क्या है? तथा भोजन में विष की परीक्षा कैसे की जा सकती है? इत्यादि। चतुर्थ उल्लास - इस चौथे उल्लास में मध्याह से लेकर सर्यास्त तक के शेष दो प्रहरों में श्रावक को क्या-क्या करना चाहिए तथा उसे किन विषयों की जानकारी रखनी चाहिए इत्यादि का उल्लेख किया गया है। पंचम उल्लास - इस उल्लास में सूर्यास्त से लेकर सूर्योदय तक के सात चौघडिये सम्बन्धी कृत्य कहे गये हैं। इसमें कहा गया है कि रोशनी कैसी रखनी चाहिए? रात्रि को क्या-क्या त्याग करना चाहिए? कैसे पलंग पर शयन करना चाहिए? किस तरह शयन करना चाहिए? जामातृ कैसा ढूंढना चाहिए? इसके साथ ही वर के लक्षण, पुरुष के लक्षण, हाथ-अंगुली-नाखून आदि के लक्षण भी बताये गये हैं। षष्टम उल्लास (प्रथम) - यह उल्लास वधू (स्त्री) लक्षण से सम्बन्धित है। इसमें वधू यानि स्त्री विषयक बिन्दुओं पर चर्चा की गई है। यह विषय गृहस्थ जीवन में रहने वाले साधकों के लिए अत्यन्त ज्ञानप्रद है। इसमें लिखा है कि वधू कैसी होनी चाहिए? विष कन्या की परीक्षा किस प्रकार करें? कैसी स्त्रियों का त्याग करना चाहिए? वर-वधू का सम्बन्ध कैसा होना चाहिए? स्त्री को अनुकूल कैसे रखा जा सकता है? गंध और बाल से स्त्री की परीक्षा कैसे की जा सकती है? कुलीन स्त्रियों को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए? पति परदेश हो तब स्त्री को किस प्रकार का वर्तन करना चाहिए? रजस्वला के समय क्या वर्जना चाहिए? इत्यादि। षष्टम उल्लास (द्वितीय) - यह उल्लास छः प्रकार की ऋतुचर्या से सम्बद्ध है। इसमें १. बसन्त २. ग्रीष्म ३. वर्षा ४. शरद ५. हेमन्त एवं ६. शिशिर इन छः ऋतओं के नामों का उल्लेख करते हुए यह बताया गया है कि श्रावक को कौनसी ऋतु में किन पदार्थों का आहार करना चाहिए? कैसा विहार (भ्रमण) करना चाहिए? कहाँ बैठना चाहिए? किन कार्यों का त्याग करना चाहिए? कैसे मकान में रहना चाहिए इस प्रकार प्रत्येक ऋतुओं के पृथक्-पृथक् कृत्यों का निरूपण किया गया है। सप्तम उल्लास - यह उल्लास श्रावक की वार्षिक चर्या का प्रतिपादन करता है। इसमें श्रावक के वार्षिक कर्तव्यों का निर्देश देते हुए कहा गया है श्रावक को दिन के चार प्रहर में ऐसा कृत्य करना चाहिए कि रात्रि को सुखपूर्वक निद्रा ले सकें। आठ मास में ऐसा प्रयत्न करना चाहिए कि वर्षाकाल (चातुर्मास) में सुखपूर्वक एक स्थान पर रह सकें। बुद्धिशाली पुरुष को यौवनवस्था में ऐसा कार्य करना चाहिए, जिससे वृद्धावस्था में सुख मिल सके। कलावान् मनुष्य को इस भव में ऐसी वस्तु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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