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________________ 658/विविध विषय सम्बन्धी साहित्य है। मूलतः प्रस्तुत कृति अपने नाम के अनुसार विवेकपूर्ण कार्यों का विवेचन करती है अर्थात् श्रावक को कौनसा कार्य कब-कैसे-क्यों करना चाहिए? इत्यादि का निर्देश करती है। यह ग्रन्थ श्रावक जीवन से सम्बन्धित करनेयोग्य, जाननेयोग्य एवं समझनेयोग्य समस्त कृत्यों एवं विधानों का सम्यक् निरूपण करने वाला है। इस ग्रन्थ के प्रारम्भ में वन्दन के प्रयोजन रूप नौ श्लोक दिये गये हैं। उनमें सर्वप्रथम परमात्मा को नमस्कार किया गया है पश्चात् परमात्मा को चन्द्र, ब्रह्मा, विष्णु, बृहस्पति, शंकर, कुबेर आदि उपमाओं से अलंकृत कर उनकी स्तुति की गई है। उसके बाद अपने गुरु जीवदेवसूरि को वन्दना की गई है तथा ग्रन्थ रचने का महत्तम प्रयोजन बताया गया है। अन्त में प्रशस्ति रूप दस पद्य हैं उनमें स्वगच्छ, स्वगुरु एवं स्वयं के नाम का उल्लेख करते हुए ग्रन्थ रचना का निमित्त बताया गया है। इसमें लिखा है कि जबालीपर के राजा उदयसिंह का देवपाल नामक मंत्री था, उसके धनपाल नामक पुत्र था, उसकी सन्तुष्टि के लिए यह ग्रन्थ रचा गया है। यह ग्रन्थ बारह उल्लासों में विभक्त है। इस ग्रन्थ की विषयवस्तु संक्षेप में अग्रलिखित है - प्रथम उल्लास - यह उल्लास दिन के प्रथम प्रहर तक करने योग्य श्रावक के कृ त्यों एवं विधियों से सम्बन्धित है। इसमें निद्रात्याग का समय, स्वप्नविचार, स्वरविचार, व्यायामविधि, दाँतुन करने की विधि, बालशुद्धि की विधि, पूजनविधि, जापविधि, नाड़ी- विचार, भोजन किये बिना क्या वर्जन करना चाहिए, जिनदर्शनविधि, गुरुवन्दनविधि, प्रतिमाधिकारविधान, भूमिपरीक्षाविधान, मन्दिर निर्माण सम्बन्धी विधान इत्यादि का सुन्दर विवेचन है। द्वितीय उल्लास - इस उल्लास में दिन के द्वितीय एवं तृतीय अर्द्धप्रहर तक करने योग्य आवश्यक क्रियाओं पर विचार किया गया है। इसमें स्नान क्रिया, क्षौरकर्म, वस्त्र-भूषण, ताम्बूल, द्रव्योपार्जन का व्यवहार किसके साथ रखना? व्यापार कौनसा और किस प्रकार करना? प्रतिज्ञा कब-कैसे ग्रहण करना? स्वामी कैसा हो? मंत्री कैसा हो? सेनापति और सेवक कैसा हो? स्वामी के साथ करने योग्य वर्तन, स्वामी के लक्षण, उद्यम से द्रव्य प्राप्ति इत्यादि कृत्यों का सम्यक् निरूपण किया गया है। तृतीय उल्लास - इस उल्लास में सूर्योदय से लेकर चतुर्थ अर्द्धप्रहर तक करने योग्य कृत्यों पर विचार किया गया है। इसमें बताया गया है कि गृहस्थी को क्या-क्या जानना चाहिए? अतिथि के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? भोजन कब-कैसा करना चाहिए? भोजन के बाद पानी किस प्रकार पीना चाहिए? भोजन के बाद हाथ कहाँ पोंछने चाहिए? भोजन करने के लिए किसके यहाँ नहीं जाना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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