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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य नाम की अज्ञातकर्तृक टीका है। एक अन्य टीका और भी है किन्तु वह भी अज्ञातकर्तृक है। पद्ममन्दिरगणि ने इस पर एक बालावबोध लिखा है । ' प्रशमरति यह कृति तत्त्वार्थसूत्र के रचयिता उमास्वाति की है। इसमें ३१३ पद्य संस्कृत भाषा में निबद्ध है। इस कृति का रचनाकाल दूसरी से चौथी के मध्य माना जाता है। इस ग्रन्थ की रचना मुनि और गृहस्थ दोनों के उद्देश्यों को लेकर हुई है। यह आचार प्रधान कृति है । इस ग्रन्थ रचना का मूल ध्येय राग-द्वेष के परिणामों से निवृत्त होना और मोक्षमार्ग को प्राप्त करना है । जैसा कि कृति नाम से सूचित होता है प्रशम = आनन्द और रति = रुचि अर्थात् आत्मिक आनंद को उपलब्ध करने की रूचि रखना। यह आनन्द राग-द्वेष के परिणाम का क्षय किये बिना सम्प्राप्त नहीं हो सकता है, इसलिए इस ग्रन्थ के प्रारम्भ में प्रथम राग-द्वेष का निरूपण किया है उसके बाद ही राग-द्वेष को दूर करने के विविध उपाय बतलाये हैं और वे उपाय पाँच व्रत, बारह-भावना, दस यतिधर्म, रत्नत्रय और ध्यान हैं। यद्यपि इस कृति में कोई भी विधि या विधान स्पष्ट रूप से दृष्टिगत नहीं होते हैं किन्तु गहराई से अवलोकन करें तो अवश्य ही कुछ स्थल विधि-विधान से सम्बन्धित दिखते हैं; जैसे धर्म-अधिकार, ध्यान अधिकार, क्षपकश्रेणी अधिकार, समुद्घात - अधिकार आदि । सामान्यतः राग-द्वेष का क्षय करने हेतु जो उपाय कहे गये हैं वे भी एक प्रकार के विधि रूप ही हैं। यह कृति निम्नलिखित बाईस अधिकारों में विभक्त है द् इतिहास / 655 , -- १. पीठबन्ध - नमस्कार २. कषाय ३. रागादि ४. आठकर्म ५- ६. करणार्थ ७. आठ मदस्थान ८. आचार ६. भावना १० यतिधर्म ११. कथा १२. तत्त्व १३. उपयोग ४. भाव १५. षड्विध द्रव्य १६. चरण १७. शीलांग १८. ध्यान १६. क्षपकश्रेणी २०. समुद्रघात २१. योगनिरोध और २२. शिवगमनविधि और फल । - उद्धृत - जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भा. ४, पृ. १७६ २ (क) यह कृति गुजराती विवेचन के साथ 'श्री महावीर जैन विद्यालय, ऑगस्ट क्रान्ति मार्ग, मुंबई' ने सन् १६८६ में प्रकाशित की है। Jain Education International (ख) यह मूल रूप से तत्त्वार्थसूत्र इत्यादि के साथ 'बिबिल ओथिका इण्डिका' से सन् १६०४ में तथा एक अज्ञातकर्तृक टीका के साथ 'जैनधर्म प्रसारक सभा' की ओर से वि.सं. १६६६ में प्रकाशित की गई है। (ग) हारिभद्रीय वृत्ति एवं अज्ञातकर्तृक अवचूर्णि के साथ भी यह कृति वि. सं. १६६६ में 'देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार संस्था' से प्रकाशित हुई है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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