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________________ 656/विविध विषय सम्बन्धी साहित्य स्पष्टतः यह कृति संक्षिप्त, सुबोध और सुग्रथित है। टीकाएँ - इस ग्रन्थ पर हरिभद्रसूरि (द्वितीय) ने वि.सं. ११८५ में १८०० श्लोक परिमाण एक टीका रची है। इसके अतिरिक्त दो टीकाएँ अज्ञातकर्तृक भी उपलब्ध होती हैं, जिनमें से एक की हस्तलिखित प्रति वि.सं. १४१८ की मिलती है। इनमें एक टीका तो हरिभद्रसूरि की टीका से अधिक प्राचीन एवं अधिक विस्तृत दिखाई देती है। हरिभद्रीय टीका की प्रशस्ति (श्लो. ३) से ज्ञात होता है कि उसके पहले भी अन्य टीकाएँ रची गई हैं। किसी ने इस ग्रन्थ पर अवचूर्णि भी लिखी है। प्रकरणसमुच्चयः यह संकलित रचना' है। इसमें मुनिचन्द्राचार्य, वादिदेवसूरि, चक्रेश्वरसूरि, रत्नसिंहसूरि आदि आचार्यों द्वारा विरचित उनपचास प्रकरण हैं। ये प्रकरण प्राकृत एवं संस्कृत की पद्य शैली में है। इनमें से पाँच प्रकरण विधि-विधान से सम्बन्ध रखने वाले हैं, उनके नाम ये हैं - १. मुखवस्त्रिका प्रकरण २. योगानुष्ठानविधि-प्रकरण ३. पौषध- विधि-प्रकरण ४. उपधानविधि-प्रकरण ५. पर्यन्ताराधना-कुलका इस कृति में संकलित प्रकरणों का रचनाकाल विक्रम की बारहवीं शती है। इससे सिद्ध होता है कि ये प्रकरण प्राचीन हैं और विवेच्य विधि-विधान के प्राचीन स्वरूप का दिग्दर्शन कराने वाले हैं। यति-श्राद्धव्रतविधिसंग्रह यह एक संपादित की गई कृति है।इसका सम्पादन (डहेलावाला) विजयराम- सूरिजी ने किया है। यह कृति तपागच्छीय परम्परानुसार गुजराती गद्य में है। इस ग्रन्थ में कृति के नामनुसार यति और श्राद्ध (श्रावक) व्रत सम्बन्धी विधियों की चर्चा हुई है। इसमें उल्लिखित विधि-विधानों के नामोल्लेख इस प्रकार हैं - (१) उपधान तप विधि- इस विधि के अन्तर्गत १. उपधान शब्द का अर्थ २. उपधान के नाम ३. उपधान की सामाचारी ४. प्रथम उपधान में प्रवेश करने की विधि ५. देववन्दन विधि ६. नन्दिसूत्र श्रवण करने की विधि ७. सप्त खमासमण विधि ८. पवेयणा विधि ६. द्वितीय उपधान में प्रवेश करने की विधि १०. तृतीय-चतुर्थ-पंचम और षष्टम उपधान में प्रवेश करने की विधि ११. तीसरे से लेकर छठे उपधान तक स्थापनाचार्य के समक्ष चैत्यवंदन इत्यादि आवश्यक क्रियाएँ 'यह ग्रन्थ श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी रतलाम वि.सं. १९८० में प्रकाशित हुआ है। २ यह कृति प्रताकार में है। इसका प्रकाशन वि.सं. २०३२ में आ. विजयसुरेन्द्रसूरीश्वरजी जैन तत्त्व ज्ञानशाला, झवेरीवाड पटणीनी खड़की, अहमदाबाद से हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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