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654/विविध विषय सम्बन्धी साहित्य
से भी कम मूल्य का नहीं है। टीकाएँ - इस ग्रन्थ पर आचार्य सिद्धसेनसूरि की तत्त्वज्ञान-विकासिनी नामक विशद टीका उपलब्ध होती है। उन्होंने इसमें लगभग १०० ग्रन्थों के उद्धरण दिये हैं और उनके ५०० से अधिक सन्दर्भो का संकलन किया है। प्रारम्भ के तीन पद्यों में से पहले में 'जैन-ज्योति' की प्रशंसा की गई है और दूसरे में महावीरस्वामी की स्तुति है। इस वृत्ति के अन्त में १६ पद्यों की एक प्रशस्ति है इससे वृत्ति प्रणेता की गुरु-परम्परा ज्ञात होती है वह परम्परा इस प्रकार है -
चन्द्रगच्छीय अभयदेवसूरि
धनेश्वरसूरि
अजितसिंहसूरि
देवचन्द्रसूरि
चन्द्रप्रभ (मुनिपति)
भद्रेश्वरसूरि
अजितसिंहसूरि
देवप्रभसूरि (प्रमाण प्रकाश के कर्ता)
सिद्धसेनसूरि (प्रवचनसारोद्धार के टीकाकार)
इसके अतिरिक्त रविप्रभ के शिष्य उदयप्रभ ने इस पर ३२०३ श्लोक परिमाण 'विषमपद' नाम की व्याख्या लिखी है। ये रविप्रभ यशोभद्र के शिष्य और धर्मघोष के प्रशिष्य थे। इस कृति पर ३३०३ श्लोक-परिमाण की 'विषमपदपर्याय'
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