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________________ 632/विविध विषय सम्बन्धी साहित्य आवश्यकसप्तति यह मुनिचन्द्रसूरि की रचना' है। इसे पाक्षिक सप्तति भी कहते हैं। इसमें संभवतः आवश्यक विधि की चर्चा हुई है। आशौचविधि तपागच्छीय श्रीधर्मसूरि की यह कृति संस्कृत भाषा में है। संभवतः इस रचना के नाम से ऐसा लगता है कि इसमें प्रतिष्ठा, पदस्थापना, सकलीकरण, व्रतारोपण इत्यादि अनुष्ठानों को सम्पन्न कराने के पूर्व आचार्य हो या मुनि हो, गृहस्थ हो उनके लिए शारीरिक, मानसिक एवं वाचिक शुद्धि करना आवश्यक बतलाया है। यह कृति शौच कर्म से सम्बन्धित है। गुरुवंदणभास (गुरुवन्दनभाष्य) इस ग्रन्थ के प्रणेता तपागच्छ संस्थापक जगच्चन्द्रसरि के शिष्य देवेन्द्रसरि है। यह कृति जैन महाराष्ट्री प्राकृत में रची गई है। इसमें कुल ४१ पद्य है। यह कृति गुरुवन्दन विधि से सम्बन्धित है। इसमें गुरुवन्दन की विधि का उल्लेख करते हुए वन्दन योग्य कौन?, वन्दन किसको?, वन्दन के अयोग्य कौन?, वन्दन के कारण, वन्दना के दोष, वन्दना के गुण, वन्दना के स्थान आदि का बाईस द्वारों में विवेचन किया है। इस ग्रन्थ के प्रारम्भ में मंगलाचरण नहीं किया गया है। प्रथम गाथा में गुरुवन्दन के तीन प्रकार-१. फेटावन्दन (मस्तक झुकाकर वन्दन करना), २. थोभवन्दन (खमासमणसूत्र पूर्वक वन्दन करना), और ३. द्वादशावर्त्तवन्दन (पदस्थ मुनियों को किया जाने वाला वन्दन) कहे हैं। इसके बाद वन्दन करने का कारण, वन्दन के पाँच नाम तथा इस ग्रन्थ में आगे कहे जाने वाले बाईस द्वारों के नामों एवं उनके विषयों का निरूपण हुआ है। गुरु वन्दनविधि से सम्बन्धित बाईस द्वारों का सामान्य वर्णन निम्न हैं - पहले द्वार में वन्दना के पाँच नाम बताये हैं- वंदनकर्म, चितिकर्म, कृतिकर्म, पूजाकर्म और विनयकर्म। दूसरे द्वार में उक्त पाँच प्रकार की वन्दना के सम्बन्ध में पाँच उदाहरण दिये हैं। तीसरे द्वार में पार्श्वस्थ, कुशील, अवसन्न, संसक्त और यथाछंद - इन पाँच प्रकार के साधुओं को अवन्दनीय माना है। चौथे द्वार में आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर और रात्निक साधुओं को वन्दन करने योग्य ' जिनरत्नकोश पृ. ३५ २ वही - पृ. ३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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