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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/613 प्रकाश डाला गया है तथा उत्तरार्ध में जातक पद्धति के अनुसार संक्षिप्त फल बताया गया है। यह कृति अप्रकाशित है। रिट्ठदार (रिष्टद्वार) यह रचना प्राकृत में किसी अज्ञात विद्वान के द्वारा लिखी गई है। इसकी ७ पत्रों की प्रति पाटन के भंडार में है। इसमें भविष्य में होने वाली घटनाओं का एवं जीवन-मरण के फलादेश का निर्देश किया गया है। लग्गसुद्धि (लग्नशुद्धि) इस ग्रन्थ के कर्ता याकिनी-महत्तरासूनु हरिभद्रसूरि माने जाते हैं किन्तु इस विषय में अनेक मत मतान्तर भी देखने को मिलते हैं। यह कृति 'लग्नकुण्डलिका' नाम से प्रसिद्ध है। इसमें प्राकृत की १३३ गाथाएँ हैं, जिनमें गोचरशुद्धि, प्रतिद्वारदशक, मास-वार-तिथि-नक्षत्र-योगशुद्धि, सुगणदिन, रजछन्नद्वार, संक्रान्ति, कर्कयोग, होरा, नवांश, द्वादशांश, षड्वर्गशुद्धि, उदयास्तशुद्धि इत्यादि विषयों पर चर्चा की गई हैं। लग्नविचार इसकी रचना उपाध्याय नरचन्द्र मुनि ने की है। यह रचना वि.सं. १३२५ की है। यह ज्योतिष विषयक ग्रन्थ है। लालचन्द्र पद्धति __ इसकी रचना मुनि कल्याणनिधान के शिष्य मुनि लब्धिचन्द्र ने वि.सं. १७५१ में की है। इस ग्रन्थ में जातक के अनेक विषय वर्णित हुए हैं। यह ग्रन्थ अनेक-अनेक उद्धरणों और प्रमाणों से परिपूर्ण है।' लघुजातकटीका इस ग्रन्थ की रचना वराहमिहिर ने की है। इस पर खरतरगच्छीय मुनि भक्तिलाभ ने वि.सं. १५७१ में लिखी टीका लिखी है तथा मतिसागर ने वि.सं. १६०२ में वचनिका और उपकेशगच्छीय खुशालसुन्दर ने वि.सं. १८३६ में स्तबक लिखा है। यह कृति ज्योतिष विषय का निरूपण करती है। २ यह ग्रन्थ उपाध्याय क्षमाविजयजी द्वारा संपादित होकर शाह मूलचंद बुलाखीदास की ओर से सन् १९३८ में बम्बई से प्रकाशित हुआ है। ' इसकी १८ वीं शती में लिखी गई प्रति अहमदाबाद के लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर में है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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