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________________ 614/ज्योतिष-निमित्त-शकुन सम्बन्धी साहित्य ३ वग्गकेवली (वर्गकेवली) इस कृति के विषय में उल्लेख हैं कि वासुकि नामक एक जैन श्रावक 'वग्गकेवली' नामक ग्रंथ लेकर हरिभद्रसूरि के पास आया था। आचार्य श्री ने उस पर टीका लिखी थी। बाद में रहस्यमय ग्रन्थ का दुरूपयोग होने की संभावना से टीका ग्रंथ नष्ट कर दिया गया ऐसा कथन 'कहावली' में है। वसन्तराजशकुन - टीका इसकी रचना वसन्तराज नामक एक विद्वान ने की है। इसे 'शकुननिर्णय' अथवा 'शकुनार्णव' भी कहते हैं। इस नाम से स्पष्ट होता हैं कि इसमें शकुन -विचार पर प्रकाश डाला गया है। इस ग्रन्थ पर उपाध्याय भानुचन्द्रगणि ने १७ वीं शती में टीका रची है। ' वर्षप्रबोध ६. इसकी रचना उपाध्याय मेघविजयजी ने की है। इसका अपरनाम 'मेघमहोदय' है। यह संस्कृत भाषा में निबद्ध है। कई अवतरण प्राकृत ग्रन्थों के भी हैं। इस ग्रन्थ का संबंध स्थानांगसूत्र के साथ बताया गया है। यह ग्रन्थ तेरह अधिकारों में विभक्त है इनमें निम्नांकित विषयों पर चर्चा की गई हैं- १. उत्पात, २. कर्पूरचक्र, ३. पद्मिनीचक्र, ४ . मण्डलप्रकरण, ५. सूर्यग्रहण - चन्द्रग्रहण का फल तथा प्रतिमास के वायु का विचार, वर्षा बरसाने और बन्द करने के मन्त्र - यन्त्र, ७. साठ संवत्सरों का फल, ८. राशियों पर ग्रहों के उदय और अस्त के वक्री का फल, ६. अयन - मास - पक्ष और दिन का विचार, १०. संक्रान्ति फल, ११. वर्ष के राजा और मन्त्री आदि १२ वर्षा का गर्भ, १३. विश्वाआय-व्यय-सर्वतोभद्रचक्र और वर्षा बताने वाले शकुन इसमें अनेक ग्रन्थों और ग्रन्थकारों के उल्लेख तथा अवतरण भी दिये गये हैं। कहीं-कहीं गुजराती पद्य भी हैं। ' २ वास्तुसार ‘वास्तुसार' नामक यह कृति चन्द्रागंज ठक्कर फेरु की महत्त्वपूर्ण रचना है। यह कृति जैन महाराष्ट्री पद्यों में निबद्ध है। इसकी गाथा संख्या २७४ है। यह एक वास्तुप्रधान रचना है जो तीन प्रकरणों में विभक्त है। , यह ग्रन्थ वेंकटेश्वर प्रेस, बंबई से प्रकाशित है। २ यह ग्रन्थ 'मेघमहोदय - वर्षप्रबोध' नाम से हिन्दी अनुवादसहित पं. भा. वानदास जैन, जयपुर से सन् १९१६ में प्रकाशित हुआ है। यह ग्रन्थ गुजराती अनुवाद के साथ श्री पोपटलाल साकरचन्द, भावनगर से प्रकाशित हुआ है। वास्तुसारप्रकरण - श्री ठक्कर फेरु विरचित, अनु. भा. वानदास जैन वि.सं. २०४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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