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612/ज्योतिष-निमित्त-शकुन सम्बन्धी साहित्य
भाव, योग, उपयोग आदि विषयों की चर्चा हुई है। प्रसंगवश गणनाओं की भिन्न-भिन्न रीतियाँ बताई गई हैं। इसमें नवग्रह, गजचक्र, यमदंष्ट्राचक्र आदि के साथ-साथ दशाओं के कोष्ठक भी दिये गये हैं। मेघमाला
किसी अज्ञात विद्वान द्वारा रचित यह कृति प्राकृत के ३२ पद्यों में निबद्ध है इसमें नक्षत्रों के आधार पर वर्षा के चिन्हों और उनके आधार पर शुभ-अशुभ फलों की चर्चा है। यन्त्रराज
इसकी रचना आचार्य मदनसूरि के शिष्य महेन्द्रसूरि ने वि.सं. १४२७ में की है। यह रचना संस्कृत के १८२ पद्यों में है। यह ग्रन्थ ग्रहगणित के लिए उपयोगी माना गया है। इसमें पाँच अध्याय है - १. गणिताध्याय, २.यन्त्रघटनाध्याय,३.यन्त्ररचना-ध्याय,४.यन्त्रशोधनाध्याय और ५.यन्त्रविचारणाध्याय।
इस ग्रन्थ की अनेक विशेषताएँ हैं - इसमें क्रमोत्क्रमज्यानयन, भुजकोटिज्या का चापसाधन, क्रान्तिसाधन, घुज्याखंडसाधन, घुज्याफलानयन, सौम्य यन्त्र के विभिन्न गणित के साधन, अक्षांश से उन्नतांश साधन, ग्रन्थ के नक्षत्र, ध्रुव आदि से अभीष्ट वर्षों के ध्रुवादि साधन, नक्षत्रों का दक्कर्मसाधन, द्वादश राशियों के साधन, यन्त्रशोधन प्रकार और विभिन्न यन्त्रों द्वारा सभी ग्रहों के साधन का गणित इत्यादि विषय सुन्दर ढंग से प्रतिपादित हुए हैं। इस ग्रन्थ के ज्ञान से पंचांग बनाया जा सकता है। इसमें ज्योतिष सम्बन्धी कई प्रकार के विधि-विधान निरूपित हुए हैं। टीका - इस ग्रन्थ पर आचार्य महेन्द्रसूरि के शिष्य आचार्य मलयेन्दुसूरि ने टीका लिखी है। इन्होंने मूलग्रन्थ में निर्दिष्ट यन्त्रों को उदाहरणपूर्वक समझाया है। इसमें पिचहत्तर नगरों के अक्षांश दिये गये हैं। वेधोपयोगी बत्तीस तारों के सायन भोगशर भी दिये गये हैं।' यशोराजीपद्धति
इसके रचयिता मुनि यशस्वत्सागर है। इन्हें जसवंतसागर भी कहते हैं। इन्होंने यह रचना वि.सं. १७६२ में रची है। यह कृति जन्मकुंडली विधि से सम्बन्धित है। इस ग्रन्थ के पूर्वार्ध में जन्मकुण्डली की रचना के नियमों पर पर्याप्त
' यह ग्रन्थ राजस्थान प्राच्यविद्या शोधसंस्थान, जोधपुर से टीका के साथ प्रकाशित हुआ है। सुधाकर द्विवेदी ने यह ग्रन्थ काशी से छपवाया है। यह बंबई से भी छपा है।
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