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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/605 नवग्रहकर्षण, वक्रातीचार, सरलगतिकर्षण, पंचग्रहास्तमितोदितकथन, भद्राकर्षण, अधिकमासकर्षण, तिथि-नक्षत्र-योगवर्धन-घटनकर्षण, दिनमानकर्षण आदि तेरह विषयों का विवरण दिया गया है।' ताजिकसार-टीका इस ग्रन्थ की रचना किसी अन्य हरिभद्रसूरि नामक विद्वान् ने वि.सं. १५८० के आसपास की है। इस ग्रन्थ पर अचलगच्छीय मुनि सुमतिहर्ष ने वि.सं. १६७७ में एक बृहट्टीका रची है। यहाँ 'ताजिक' शब्द का अर्थ करते हुए एक विद्वान् ने लिखा है कि - जिस समय मनुष्य का जन्मकालीन सूर्य होता है अर्थात् जब उसकी आयु का कोई भी सौर वर्ष समाप्त होकर दूसरा सौर वर्ष लगता है उस समय के लग्न और ग्रह-स्थिति द्वारा मनुष्य को उस वर्ष में होने वाले सुख-दुःख का निर्णय जिस पद्धति द्वारा किया जाता है उसे 'ताजिक' कहते हैं। उपर्युक्त व्याख्या से यह मालूम होता है कि यह ताजिक शाखा मुसलमानों से आई है। जन्मकुंडली और उसके फल के नियम ताजिक में प्रायः जातक सदृश हैं और वे हमारे ही हैं यानि इस भारत देश के ही हैं। तिथिसारणी इसकी रचना पार्श्वचन्द्रगच्छीय श्री वाघजी मुनि ने की है। यह ग्रन्थ वि. सं. १७८३ का है। इसमें पंचांग बनाने की प्रक्रिया बतायी गई है। यह ग्रन्थ 'मकरन्दसारिणी' जैसा है। इसकी प्रति लोंबड़ी के जैन ग्रन्थ-भंडार में है। दिणसुद्धि (दिनशुद्धि) इस ग्रन्थ के रचनाकार रत्नशेखरसूरि है। इसका रचनाकाल १५ वीं शताब्दी है। इसमें कुल १४४ गाथाएँ हैं, जिनमें रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, और शनि का वर्णन करते हुए तिथि, लग्न, प्रहर, दिशा और नक्षत्र की शुद्धि बताई गई है। दीक्षा-प्रतिष्ठाशुद्धि इस ग्रन्थ की रचना वि.सं. १६८५ में उपाध्याय समयसुन्दर ने की है। ' इसकी एक प्रति अहमदाबाद के ला.द.भा.सं. विद्यामंदिर के संग्रह में है। २ यह ग्रन्थ उपाध्याय क्षमाविजयजी द्वारा संपादित होकर शाह मूलचंद बुलाखीदास की ओर से सन् १६३८ में मुंबई से प्रकाशित हुआ है। २ इसकी एकमात्र प्रति बीकोनर के खरतरगच्छीय के आचार्य शाखा के उपाश्रय स्थित ज्ञानभंडार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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