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606/ ज्योतिष - निमित्त शकुन सम्बन्धी साहित्य
इसमें दीक्षा-प्रतिष्ठा सम्बन्धी शुद्धि के विधान पर चर्चा की गयी है। यह ग्रन्थ बारह अध्यायों में विभाजित है १. ग्रहगोचरशुद्धि, २. वर्षशुद्धि ३. अयनशुद्धि ४. मासशुद्धि ५. पक्षशुद्धि ६ दिनशुद्धि ७ वारशुद्धि ८. नक्षत्रशुद्धि ६ . योगशुद्धि १०. करणशुद्ध ११. लग्नशुद्धि और १२ . ग्रहशुद्धि
दोषरत्नावली
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यह ग्रन्थ ज्योतिषविषयक प्रश्नलग्न पर पूर्णिमागच्छीय भावरत्नसूरि के शिष्य मुनि जयरत्नगणि ने रचा है। इसका रचनाकाल लगभग वि. सं. १६६२ है । यह कृति अप्रकाशित है। '
नरपतिजयचर्या
इसके रचयिता आम्रदेव के पुत्र जैन गृहस्थ नरपति हैं। इसकी रचना वि.सं. १२३२ में हुई है। इस ग्रंथ में मातृका आदि स्वरों के आधार पर शकुन देखने की विधि और विशेषतः मांत्रिक यंत्रों द्वारा युद्ध में विजय प्राप्त करने हेतु शकुन देखने की विधियों का वर्णन हुआ है। तांत्रिक प्रक्रिया में प्रचलित मारण, मोहन, उच्चाटन आदि षट्कर्मों एवं मंत्रां का भी इसमें उल्लेख किया गया है। टीका - इस पर जैनेतर विद्वान ने संस्कृत टीका रची है यह टीका आधुनिक है। नाडीदार ( नाड़ीद्वार )
किसी अज्ञात विद्वान् द्वारा रची गई यह कृति प्राकृत भाषा में निबद्ध है। इसके ४ पत्रों की प्रति पाटन के जैन भंडार में मौजूद है। इसमें कृति नाम के अनुसार इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाम की नाड़ियों के आधार पर फल विधि का निरूपण हुआ है।
नाड़ीविज्ञान
यह रचना संस्कृत के ७८ पद्यों में गुम्फित है। इसमें देहस्थित नाड़ियों की गतिविधि के आधार पर शुभाशुभ फलों का विचार किया गया है । ' निमित्तदार (निमित्तद्वार)
यह रचना अज्ञात विद्वान की है। इसकी ४ पत्रों की प्रति पाटन के ग्रंथ - भंडार में है। इसमें निमित्त विषयक फलविधान का प्रतिपादन है।
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यह कृति अलवर महाराजा लायब्रेरी केटलॉग में उपलब्ध है।
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यह ग्रंथ वेंकटेश्वर प्रेस, मुंबई से प्रकाशित हुआ है।
३ यह प्रति पाटन के जैन भंडार में है।
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