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________________ 604/ज्योतिष-निमित्त-शकुन सम्बन्धी साहित्य है। इसका काल वि.सं. की तीसरी-चौथी शती माना जाता है। यह निमित्त शास्त्र का अति महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसके विषय में कहा जाता हैं कि यह रचना कुष्मांडी देवी द्वारा उपदिष्ट होकर अपने शिष्य पुष्पदंत और भूतबलि के लिए की गई थी। इसमें उल्लिखित विधानादि के प्रयोग द्वारा ज्वर, भूत, शाकिनी आदि के उपद्रव दूर किये जा सकते हैं। यह समस्त ग्रन्थ निमित्तशास्त्र के उद्गम रूप है। इस कृति को जानने वाला कलिकाल सर्वज्ञ और चतुर्वर्ग का अधिष्ठाता बन सकता है। इस ग्रन्थ को सुनने मात्र से मंत्र-तंत्रवादी मिथ्यावादियों का तेज निष्प्रभ हो जाता है। इस प्रकार इस कृति का प्रभाव अद्भुत है। आगमिक व्याख्याओं के उल्लेखानुसार आचार्य सिद्धसेन ने 'जोणिपाहुड' के आधार से अश्व बनाये थे। इसके बल से महिषों को अचेतन किया जा सकता था और धन पैदा किया जा सकता था। विशेषावश्यकभाष्य (गा. १७७५) की मलधारी हेमचन्द्रसूरिकृत टीका में अनेक विजातीय द्रव्यों के संयोग से सर्प, सिंह आदि प्राणी एवं मणि, सुवर्ण आदि अचेतन पदार्थ पैदा करने का उल्लेख मिलता है कुवलयमालाकार के कथनानुसार 'जोणिपाहुड' में कही गई बात कभी असत्य नहीं होती। प्रभावकचरित्र (५, ११५-१२७) में इस ग्रन्थ के बल से मछली और सिंह बनाने का निर्देश है। कुलमण्डनसूरि द्वारा 'विचारामृतसंग्रह' (वि.सं. १४७३-पृ.६) में योनिप्राभृत को पूर्वश्रुत से चला आता हुआ स्वीकार किया गया है इस कथन से ज्ञात होता हैं कि अग्रायणीयपूर्व का कुछ अंश लेकर धरसेनाचार्य ने इस ग्रन्थ का उद्धार किया है। इसमें पहले अठाईस हजार गाथाएँ थी, उन्हीं को संक्षिप्त करके 'योनिप्राभृत में रखा है। जोइसदार (ज्योतिर) __इसके कर्त्ता का नाम अज्ञात है। यह ग्रन्थ प्राकृत पद्य में रचित है। इसके दो पत्रों की कृति पाटन के जैन भंडार में है। इसमें राशि और नक्षत्रों के शुभाशुभ फलों का वर्णन किया गया है। जोइसचक्कवियार (ज्योतिषचक्रविचार) इसके कर्ता का नाम मुनि विनयकुशल है। यह ग्रन्थाग्र १५५ श्लोक परिमाण है। यह प्राकृत पद्य में निबद्ध हैं। इसका उल्लेख जैन ग्रन्थावली (पृ. ३४७) में है। इसमें ज्योतिष सम्बन्धी विधि-विधान की चर्चा हुई है। टिप्पनकविधि __यह ग्रन्थ मुनि मतिविशाल गणि ने प्राकृत में रचा है। इसका रचना-समय ज्ञात नहीं हो पाया है। इस ग्रन्थ में पंचांगतिथिकर्षण, संक्रान्तिकर्षण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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