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602/ज्योतिष-निमित्त-शकुन सम्बन्धी साहित्य
ज्योतिषप्रकाश
यह ग्रन्थ उपाध्याय नरचन्द्र मुनि ने रचा है। यह फलित ज्योतिष के मुहूर्त और संहिता का सुन्दर ग्रन्थ है। इसके दूसरे विभाग में जन्मकुण्डली के फलों का विचार किया गया है। इस ग्रन्थ द्वारा फलित ज्योतिष का आवश्यक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। ज्योतिषरत्नाकर
इस ग्रन्थ की रचना मुनि लब्धिविजयजी के शिष्य महिमोदय मुनि ने की है। यह कृति करीब वि.सं. १७२२ की है। ये गणित और फलित दोनों प्रकार की ज्योतिर्विद्या को मर्मज्ञ विद्वान थे। यह ग्रन्थ फलित ज्योतिष का है। इसमें संहिता, मुहूर्त और जातक इन तीनों विषयों पर प्रकाश डाला गया है। यह ग्रन्थ छोटा होते हुए भी अत्यन्त उपयोगी है। ज्योतिषकरण्डक
ज्योतिषकरण्डक नामक यह प्रकीर्णक प्राकृत भाषा में निबद्ध एक पद्यात्मक रचना है। यह कृति पादलिप्ताचार्य (द्वितीय) की है। इसमें कुल ४०५ गाथाएँ हैं। यह ग्रन्थ १८३० श्लोक परिमाण रूप है। इसका रचना काल लगभग ग्यारहवीं शती है। प्रस्तुत कृति का प्रतिपाद्य पिण्य ज्योतिष संबंधी तिथि-नक्षत्र-पौरुषी परिमाण, ऋतुपरिमाण आदि का विधिवत् विवेचन करना है।
इसमें ज्योतिष सम्बन्धी तेईस अधिकार हैं। प्रारम्भ में वर्धमानस्वामी को नमस्कार किया गया है इसके पश्चात् तेईस अधिकारों के नाम निर्देश किये गये हैं - १. काल परिमाण, २. मान-अधिकार, ३. अधिकमास-निष्पत्ति, ४. अवमरात्र, ५-६. पर्वतिथि समाप्ति, ७. नक्षत्र-परिमाण, ८. चन्द्र-सूर्य-परिमाण, ६. नक्षत्र-चन्द्र-सूर्य-गति, १०. नक्षत्रयोग, ११. मण्डल विभाग, १२. अयन, १३. आवृत्ति, १४. मण्डल मुहूर्त गति, १५. ऋतु-परिमाण, १६. विषुवत्प्राभृत, १७. व्यतिपात प्राभृत १८. ताप क्षेत्र, १६. दिवस-वृद्धिहानि, २०. अमावस्या-प्राभृत, २१. पूर्णिमा-प्राभृत, २२. प्रणष्टपूर्व, २३. पौरुषी-परिमाण
उपरोक्त तेईस अधिकारों की चर्चा करते हुए सर्वप्रथम काल को अनागत, अतीत और वर्तमान तथा संख्यात, असंख्यात और अनन्त निर्दिष्ट किया गया है। इसके पश्चात काल के विभिन्न परिमाण, समय, उच्छवास, प्राण, स्तोक आदि का विवरण हैं। इसमें नलिका अर्थात् घटिका के निर्माण की विधि भी बतलायी गई है। तीसरे अधिकार में अधिक मास की निष्पत्ति का विवेचन है। इसके पशचात् चौथे अधिकार का निरूपण करने के पूर्व पाँचवे-छट्टे पर्व-तिथि समाप्ति का विवेचन है। इसमें तिथि की हानि और वृद्धि का निरूपण : थे
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