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600/ज्योतिष-निमित्त-शकुन सम्बन्धी साहित्य
ज्योतिस्सारसंग्रह
इसकी रचना तपागच्छीय चन्द्रकीर्तिसूरि के शिष्य हर्षकीर्तिसूरि ने वि.सं. १६६० में की है। इसे 'ज्योतिषसारोद्धार' भी कहते हैं। यह ग्रन्थ तीन प्रकरणों में विभक्त है।' ग्रन्थकार ने भक्तामरस्तोत्र, लघुशान्ति स्तोत्र, अजितशान्तिस्तव, नवकारमंत्र आदि स्तोत्रों पर टीकाएँ रची हैं। ज्योतिस्सार (जोइसहीर)
इस ग्रन्थ की रचना खरतरगच्छीय उपाध्याय देवतिलक के शिष्य मुनि हीरकलश ने वि.सं. १६२१ में की है। यह कृति प्राकृत पद्य में है। इसमें दो प्रकरण हैं। इस ग्रन्थ की हस्तलिखित प्रति बम्बई के माणकचन्द्रजी के भण्डार में है। मुनि हीरकलश में राजस्थानी भाषा के ६०० दोहों में हीरकलश नामक ग्रन्थ रचना भी की है वह कृति श्री साराभाई नवाब अहमदाबाद ने प्रकाशित की है।
इस ग्रन्थ में जो विषय निरूपित हैं वही इस प्राकृत ग्रन्थ में भी निबद्ध है। इसमें ज्योतिष सम्बन्धी आवश्यक विधि-विधान बताये गये हैं। यह एक प्रसिद्ध कृति है। मुनि हीरकलश की अन्य कृतियाँ ये हैं - १.अठार-नाता सज्झाय, २. कुमतिविध्वंस-चौपाई, ३. मुनिपति-चौपाई,४.सोल-स्वप्न सज्झाय, ५.आराधनाचौपाई, ६. सम्यक्त्व-चौपाई, ७. जम्बू-चौपाई, ८. मोती-कपासिया संवाद, ६. सिंहासन-बत्तीसी, १०. रत्नचूड़-चौपाई, ११. जीभ-दाँत संवाद, १२. हियाल, १३. पंचाख्यान, १४. पंचसती-द्रुपदी चौपाई, १५. हियाली। ये सब कृतियाँ जूनी गुजराती अथवा राजस्थानी में हैं। ज्योतिस्सार
इस ग्रन्थ की रचना ठक्करफेरु ने प्राकृत पद्य में की है। उन्होंने इस ग्रन्थ में हरिभद्रसूरि, पद्मप्रभसूरि नरचंद्र, जउण, वराह, लल्ल, पाराशर, गर्ग आदि ग्रन्थकारों के नामों का उल्लेख करते हुए लिखा है कि इनके ग्रन्थों का अवलोकन करके ही यह ग्रन्थ रचा गया है। इसका रचनाकाल वि.सं. १३७२-७५ के आसपास है।
इसमें कुल २३८ गाथाएँ हैं। यह ग्रन्थ चार द्वारों में विभक्त है। पहले दिन शुद्धि नामक द्वार में ४२ गाथाएँ हैं, जिनमें वार, तिथि और नक्षत्र जन्म
' इसकी हस्तलिखित प्रति अहमदाबाद के डेला भंडार में उपलब्ध है। 'उद्धृत- जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भा. ५ पृ. १८५-८६ ३ यह रत्नपरीक्षादिसप्तग्रन्थसंग्रह के नाम से राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर से प्रकाशित
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