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598 / ज्योतिष - निमित्त शकुन सम्बन्धी साहित्य
और रहस्यपूर्ण है। यह कृति अप्रकाशित है । ' अवचूरि- इस ग्रन्थ पर स्वोपज्ञ अवचूरि लिखी गई है। चमत्कारचिन्तामणि- टीका
यह रचना राजर्षि भट्ट की है। इसमें मुहूर्त और जातक दोनों अंगों के विषय में उपयोगी बातों का वर्णन किया गया है। इस ग्रन्थ पर खरतरगच्छीय मुनि पुण्यहर्ष के शिष्य मुनि अभयकुशल ने लगभग वि.सं. १७३७ में बालावबोधिनी वृत्ति रची है। मुनि मतिसागर ने वि.सं. में इस ग्रन्थ पर 'टबा' की रचना की है। छायादार
इसकी रचना अज्ञात नामक विद्वान ने की है। यह प्राकृत के १२३ पद्यों में रचित है। इसके दो पत्रों की प्रति पाटन के जैन भंडार में है। इसमें छाया के आधार पर शुभ-अशुभ फलों का विचार किया गया है।
छींक - विचार
यह रचना अज्ञात कर्त्ता की है। इसकी भाषा प्राकृत है। इसमें छींक के शुभ - अशुभ फलों के बारे में वर्णन हैं। इसकी प्रति पाटन के भंडार में है । जन्मसमुद्र
इस ग्रन्थ के कर्त्ता उपाध्याय नरचन्द्र हैं। ये कासहृदगच्छीय श्री उद्योतनसूरि के प्रशिष्य एवं सिंहसूरि के शिष्य थे। इसकी रचना वि.सं. १३२३ में हुई है। यह ज्योतिष विधान विषय लाक्षणिक ग्रन्थ है। इसमें आठ विभाग है १. गर्भसंभवादि लक्षण,२. जन्मप्रत्ययलक्षण, ३. रिष्टयोगतमंगलक्षण, ४. निर्वाणलक्षण, ५. द्रव्योपार्जनराजयोग लक्षण, ६. बालस्वरूपलक्षण, ७. स्त्रीजातकस्वरूपलक्षण, ८. नामसादियोग-दीक्षावस्था - युर्योगलक्षण
इसमें लग्न और चन्द्रमा से समस्त फलों का विचार किया गया है। जातक के लिए यह अत्यंत उपयोगी ग्रन्थ है । '
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टीका
इस ग्रन्थ पर 'बेड़ाजातक' नामक स्वोपज्ञ वृत्ति रची गई है। यह वृत्ति १०५० श्लोक प्रमाण है । इनके ज्योतिष विषयक अनेक ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं।
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इसकी १ प्रति अहमदाबाद के ला. द.भा.सं. विद्यामंदिर में है।
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यह कृति अप्रकाशित है। इसकी ७ पत्रों की हस्तलिखित प्रति ला. द. भा. सं. विद्यामंदिर अहमदाबाद में है।
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