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________________ 596/ज्योतिष-निमित्त-शकुन सम्बन्धी साहित्य ५. मुहूर्तद्वार - तीस मुहूर्त का एक दिन रात होता है। तीस मुहूत्तों में पन्द्रह मुहूर्त दिन के और पन्द्रह मुहूर्त रात्रि के होते हैं। गणिविद्या में दिन के १५ मुहूत्तों के नाम एवं कुछ रात्रि के मुहूत्तों के नाम बताये गये हैं, परन्तु रात्रि में किसी भी कार्य को करने का उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। इसमें कहा गया हैं कि मित्र, नन्दा, सुस्थित, अभिजित, चन्द्र, वरुण, अग्निवेश, ईशान, आनन्द एवं विजय इन मुहूत्तों में शैक्ष को उपस्थापित (महाव्रतों में दीक्षित) और गणि एवं वाचक पद प्रदान करें। ब्रह्म, वलय, वायु, वृषभ तथा वरुण मुहूर्त में अनशन, पादोपगमन एवं समाधिमरण ग्रहण करें। ६. शकुनबलद्वार - प्रत्येक कार्य को करने के पूर्व घटित होने वाले शुभत्त्व या अशुभत्त्व का विचार करना शकुन कहलाता है। ग्रन्थ में बताया गया है कि पुल्लिंग नाम वाले शकुनों में शैक्ष को दीक्षा प्रदान करें। स्त्री नाम वाले शकुनों में समाधिमरण ग्रहण करें, नपुंसक नाम वाले शकुनों में सभी शुभ कार्यों का त्याग करें एवं मिश्रित निमित्तों (शकुनों) में सभी आरम्भों का त्याग करें। ७. लग्नबलद्वार - लग्न का अर्थ है- वह क्षण जिसमें सूर्य का प्रवेश किसी राशि विशेष में होता हो। लग्न के आधार पर किसी कार्य के शुभ-अशुभ फल का विचार करना लग्न शास्त्र कहा जाता है। प्रस्तुत ग्रन्थ में अस्थिर राशियों वाले लग्नों में शैक्ष को दीक्षा प्रदान करना, स्थिर राशियों वाले लग्नों में व्रत की उपस्थापना करना, एकावतारी लग्नों में स्वाध्याय एवं होरा लग्नों में शैक्ष को दीक्षा प्रदान करने का निर्देश किया है। इसमें यह भी बताया है कि सौम्य लग्नों में संयमाचरण एवं क्रूर लग्नों में उपवास आदि करना चाहिए। राहु एवं केतु वाले लग्नों में सर्वकार्य त्याग करने चाहिए। ८. निमित्तबलद्वार - भविष्य आदि जानने के एक प्रकार को निमित्त कहा गया है। कार्यों को सम्पादित करने के लिए निमित्त पर भी विचार करना आवश्यक होता है। यहाँ पर पुरुष नाम वाले निमित्तों में पुरुष दीक्षा ग्रहण करें एवं स्त्री नाम वाले निमित्तों में स्त्री दीक्षा ग्रहण करें, ऐसा कहा गया है। नपुंसक संज्ञा वाले निमित्तों में करने योग्य कृत-अकृत कार्यों का भी विवेचन किया गया है। ग्रन्थ की अंतिम गाथाओं में बलाबल विधि पर विचार करते हुए कहा है कि दिवसों से तिथि बलवान होती है, तिथियों से नक्षत्र बलवान होते हैं, नक्षत्रों से करण और करणों से ग्रह बलवान होते हैं, ग्रहों से मुहूर्त, मुहूत्तों से शकुन, शकुनों से लग्न और लग्नों से निमित्त बलवान होते हैं। गणसारणी इस ज्योतिष विधान विषयक ग्रन्थ की रचना पार्श्वचन्द्रगच्छीय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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