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________________ 590/ज्योतिष-निमित्त-शकुन सम्बन्धी साहित्य मतलब सिद्धियोग, अमृतयोग, राजयोग आदि से हैं। इसमें वार सम्बन्धी शुभ-अशुभ योग और नक्षत्रसम्बन्धी शुभ-अशुभ योग विस्तार से कहे गये हैं। इसके साथ ही लग्न-तिथि- नक्षत्र गंडान्त का विचार किया गया है। आनन्दादि योग का चक्र दिया गया है। एकार्गलयोग, ग्रहवेध, वेधफल, लता, पात आदि पर भी विचार किया गया है। पंचम द्वार में मेषादि बारह राशियों का उल्लेख हुआ है। इसके साथ ग्रहों के ऊँच-नीच का विचार, ग्रहों की राशि, स्थिति एवं मान, राशि सम्बन्धी बारह भाव, राशियों के षड्वर्ग, ग्रहों के मित्र-शत्रु का विचार भी किया गया है। षष्ठम द्वार 'गोचर' विषय का प्रतिपादन करता है। यहाँ गोचर शब्द से तात्पर्य है- पूर्व-पूर्व की राशियों से उत्तर-उत्तर की राशियों में ग्रहों का संचरण करना। इस द्वार में ग्रहगोचर के शुभाशुभ फल कहे गये हैं। ग्रहगोचर से बारहभावों के सुख-दुखादि कहे गये हैं। चन्द्रबल, ताराबल, अष्टवर्ग, राशिस्थग्रहफल समय, प्रतिकूल ग्रहबल की शान्ति के उपाय भी निरुपित है। सप्तमद्वार 'कार्य' नाम से सम्बोधित है। यहाँ कार्य का अर्थ है- विद्या, व्यापार, प्रवेश, प्रस्थान, प्रतिष्ठा, दीक्षा आदि का प्रारम्भ करना। इस द्वार में पुष्यबल, मूला-आश्लेषा नक्षत्र का फल, गुरु-शिष्य के नाड़ी-नक्षत्र का शुभाशुभ फल, गुरु-शिष्यादि का तारा विचार, कर्णवेध-क्षौरकर्म-उपनयनकर्म-नवीनवस्त्र परिधान करने योग्य शुभाशुभ दिन बताये गये हैं। अष्टम द्वार गमन यात्रा विधि से सम्बन्धित है। इसमें यात्रा की दिनशद्धि, यात्रा के योग्य नक्षत्रादि, यात्रा के सम्बन्ध में योगिनी, कालपाश, वत्सफल, शकुनबल, अनिष्ट लग्न, होरा, शुभाशुभ ग्रहस्थान, दशापति, वक्री-मार्गी, सौम्य-असौम्य शुभाशुभ योग, करणविधि इत्यादि विषयों का सहेतु विवेचन किया गया है। नवम द्वार में 'वास्तुविधि' का प्रतिपादन है। दशम द्वार 'विलग्न' (उस दिन की उदित राशि) से सम्बन्धित है। इस द्वार में कहा गया है कि विवाह, दीक्षा, प्रतिष्ठा आदि में उस दिन की उदित राशि वाला लग्न ग्रहण करना चहिये। इसमें निषेधित लग्न, ग्रहों के उदय-अस्त दिन की संख्या, वर्ष-मासादि की शुद्धि पर विशेष चर्चा की गई है। एकादश द्वार 'मिश्र' नाम का है। इसमें निर्देश है कि दीक्षा, प्रतिष्ठादि के लग्न में चन्द्रबल अवश्य देखना चाहिए। उस चन्द्रबल में १. राशिगोचर, २. नवांशगोचर, ३. अष्ट- वर्गशुद्धि, ४. शुभतारा, ५. शुभावस्था, ६.वामवेध, ७.शुक्लेतर पक्ष प्रारम्भ, ८. मित्राधिमित्रगृहस्थिति, ६. सौम्यगृहस्थिति, १०.मित्राधिमित्रांशस्थिति, ११.सौम्यांशस्थिति, १२.मित्राधिमित्रग्रहयुति,१३. सौम्यग्रहयुति, १४. मित्राधिमित्रग्रहदृष्टि, १५. सौम्यग्रहदृष्टि इन विषयों पर विचार करना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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