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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/585 सांस्कृतिक इतिहास प्रेमियों की इस ग्रन्थ मे विपूल सामग्री भरी पड़ी है। प्राकृत और जैन प्राकृत व्याकरणज्ञों के लिये भी विपुल सामग्री का संचय है। यहाँ उल्लेखनीय है कि इस अंगविद्या ग्रन्थ का मुख्य सम्बन्ध मनुष्यों के अंग एवं उनकी विविध क्रिया चेष्टाओं से है। इस कारण इस ग्रन्थ में अंग एवं क्रियाओं का विशदरूप में वर्णन हुआ है। ग्रन्थकर्ता ने अंगों के आकार-प्रकार, वर्ण, तोल, लिंग, स्वभाव आदि को ध्यान में रखकर उनको २७० विभागों में विभक्त किया है।' मनुष्यों की विविध चेष्टाएँ, जैसे कि बैठना, आमर्श, खड़ा रहना, देखना, हँसना, संलाप, क्रन्दन, निर्गमन, अभ्युत्थान आदि; इन चेष्टाओं का अनेकानेक भेद-प्रकारों द्वारा वर्णन किया गया है। साथ में मनुष्य के जीवन में होने वाली अन्यान्य क्रिया-चेष्टाओं का वर्णन एवं उनके एकार्थकों का भी निर्देश इस ग्रन्थ में किया है। इससे सामान्यतया प्राकृत वाङ्मय में जिन क्रियापदों का उल्लेख-संग्रह नहीं हुआ है उनका संग्रह इस ग्रन्थ में विपुलता से हुआ है, जो प्राकृत भाषा की समृद्धि की दृष्टि से बड़े महत्त्व का है। सांस्कृतिक दृष्टि से इस ग्रंथ में मनुष्य, तिर्यच, पशु-पक्षी, क्षुद्रजन्तु, देव-देवी और वनस्पति के साथ सम्बन्ध रखने वाले कितने ही पदार्थ वर्णित हैं।' आश्चर्य की बात तो यह है कि ग्रन्थकार ने इस शास्त्र में एतद्विषयक प्रणालीकानुसार वृक्ष जाति और उनके अंग, सिक्के, भांडोपकरण, भोजन, पेयद्रव्य, आभरण, वस्त्र, आसन, आयुध, आदि जैसे जड़ एवं क्षुद्रचेतन पदार्थों को भी पुं-स्त्री-नपुंसक विभाग में विभक्त किया है। इस ग्रन्थ में इन चीजों के नाम मात्र ही मिलते हों, ऐसा नहीं है किन्तु कई चीजों के वर्णन और उनके एकार्थक भी मिलते हैं। जिन चीजों के नामों का पता संस्कृत-प्राकृत कोश आदि से न चले, ऐसे नामों का पता इस ग्रन्थ के सन्दर्भो को देखने से चल जाता है। इतना ही नहीं इस ग्रंथ में शरीर के अंग एवं मनुष्य-तिर्यच-वनस्पति, देव-देवी वगैरह के साथ संबंध रखने वाले जिन-जिन पदार्थों के नामों का संग्रह है वह तद्विषयक विद्वानों के लिए अतिमहत्त्वपूर्ण संग्रह बन जाता है। इस ग्रन्थ में कुछ ऐसे शब्दों का भी प्रयोग हुआ है; जैसे आजीवक, डुपहारक आदि जो संशोधकों के लिए महत्त्व के हैं। अंगविद्याशास्त्र के साठ अध्यायों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है - पहला अध्याय का नाम 'अंगोत्पत्ति' है इसमें अंगविद्या की उत्पत्ति, अंगविद्या का स्वरूप एवं अंगविद्या प्रकीर्णक ग्रन्थ के अध्यायों के नाम दिये हैं। दूसरा अध्याय 'अंगविज्जा - देखिये परिशिष्ट ४ २ वही, देखिये, परि. ३ ३ वही, देखिये, परि. ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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