SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 30/जैन विधि-विधानों का उद्भव और विकास ही रहा है। इसी प्रकार प्रतिष्ठा आदि के विधि-विधान भी अन्य परम्पराओं से प्रभावित हु हैं और अनेक स्थितियों में यह भी हुआ है कि इन विधि-विधानों को जैनाचार्यों ने अपनी परम्परानुसार परिष्कारित करने का प्रयत्न भी किया है। यद्यपि जैन आचार और विधि-विधान को लेकर विपुल साहित्य की रचना हुई, उनमें से कुछ ग्रन्थ तो प्रकाशित और अनुदित हुए हैं किन्तु अधिकांश ग्रन्थ ऐसे हैं जो काल - कवलित हो चुके हैं या दीमकों के द्वारा भक्षित होने के लिए किन्हीं शास्त्र भंडारों में प्रतीक्षारत हैं। अनेक ऐसे ग्रन्थ हैं जिनके निर्मित होने के और काल विशेष में अस्तित्व में रहने के संकेत तो मिलते हैं परन्तु वर्तमान में उपलब्ध नहीं है । इस प्रकार इस दिशा में व्यापक शोध कार्य की अपेक्षा बनी हुई है। निष्कर्षतः जैन विधि- विधिनों को लेकर मेरे समक्ष निम्नलिखित जो बिन्दू विचारणीय बने हैं उन पर शोधकार्य करने का मानस तैयार किया है वे, इस प्रकार हैं जहाँ तक मेरा सोचना है यदि इस क्षेत्र में कोई शोधपरक - 5- तुलनात्मक दृष्टि ओर ऐतिहासिक विकासक्रम को लक्ष्य में रखकर कार्य किया जाये तो हजारों पृष्ठों की सामग्री उपलब्ध कराई जा सकती है। इस संबंधी साहित्य का अब तक आलोड़न नहीं हुआ है कालक्रम को सम्मुख रखते हुए जैन विधि-विधानों के ऐतिहासिक विकास को नहीं दिखाया गया है। कालक्रम के परिप्रेक्ष्य में जो-जो भी परिवर्तन हु हैं उनकी चर्चा भी नहीं हुई है। जैन परंपरा का प्रभाव अन्य परम्परा के विधि-विधानों पर या अन्य परम्परा का प्रभाव जैन धर्म के विधि-विधानों पर कब, कैसे हुआ, इस तरह का कार्य भी अभी तक नहीं हुआ है सभी प्रकार के विधि-विधान किसी न किसी रूप में अनुष्ठित किये ही जाते हैं किन्तु उनके उद्देश्य, और प्रयोजन क्या हैं ? उनकी अनिवार्यता कितनी हैं ? इत्यादि मूलभूत तथ्यों पर भी कोई प्रामाणिक, शोधपरक या जनसामान्योपयोगी कार्य नहीं हुआ है, जिन्हें जिनविधियों से प्रयोजन होता है वे तत्सम्बन्धी जैसे - प्रतिष्ठा, प्रतिक्रमण, जिनदर्शन, सामयिक आदि की पुस्तकें रूढ़िगत रूप से प्रकाशित करवा लेते है और उस आधार पर उन विधियो को सम्पन्न कर लेते हैं किन्तु इन विधि-विधानों के बारे में जो आवश्यक जानकारियाँ दी जानी चाहियें वे जनसामान्य को उपलब्ध नहीं हुई है। प्रायः विधि-विधान विषयक ग्रन्थ अपनी-अपनी परम्पराओं को लेकर ही प्रकाशित हुए हैं उन पर तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत नहीं हुआ है। जैन धर्म की ही विविध परम्पराओं खरतरगच्छ, तपागच्छ, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy