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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/29 होता हैं कि जैन विधि-विधान वैयक्तिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक सभी दृष्टियों से निर्मित हुए हैं। साथ ही साथ वे संसारी से सिद्ध, नर से नारायण, आत्मा से परमात्मा बनने के निकटतर कारण हैं। __अब हम विचार करते हैं कि जैन विधि-विधानों पर पूर्वाचार्यों द्वारा विपुल साहित्य का सर्जन हुआ है जिसकी ग्रन्थसूची पूर्व में दे चुके हैं, किन्तु पूर्वाचार्य रचित प्राकृत-संस्कृत आदि के इन ग्रन्थों की सामग्री से जनसामान्य आज भी परिचित है। उन ग्रन्थों को जन-उपयोगी बनाने हेतु अब तक क्या कार्य हुए हैं और उनमें क्या करने योग्य हैं ? यह विचारणीय है। जहाँ तक जानकारी है कि पूर्वाचार्य रचित विधि-विधान संबंधी इन प्राकृत-संस्कृत ग्रन्थों की विशेष जानकारी विद्वदवर्ग में भी नहीं है। आचार-विचार से संबंधित कुछ ग्रन्थों पर तो शोध कार्य हुए हैं किन्तु तन्त्र, मन्त्र एवं कर्मकाण्ड संबंधी साहित्य प्रायः उपेक्षित ही रहा है, यद्यपि गुरु शिष्य परंपरा से यह सामग्री हस्तांतरित तो होती रही है, किन्तु इसका व्यापक अध्ययन संभव नहीं हो सका है, क्योंकि विधि-विधान और विशेष रूप से तांत्रिक या साधनात्मक विधि-विधान रहस्य के घेरे में ही रहे हैं। गुरु केवल योग्य-विश्वसनीय शिष्य को ही इन्हें हस्तांतरित करते थे, अतः विद्वत्वर्ग भी इससे वंचित ही रहा है। जहाँ तक मेरी जानकारी है जैन तंत्र, मंत्र साधनापरक एवं कर्मकाण्ड से संबंधित कुछ कृतियों का प्रकाशन तो हुआ है किन्तु शोधपरक दृष्टि से उन पर कोई कार्य नहीं हुआ है। हाँ! एक बात अवश्य सत्य है कि इन ग्रन्थों में से कुछ विशिष्ट महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ अंग्रेजी और हिन्दी में रूपांतरित तो हुए हैं पर इनके ऐतिहासिक विकास क्रम को तथा इनके पारस्परिक प्रभाव को उजागर करने के प्रयत्न नहींवत् हुए हैं। विवरणात्मक सूचना देने की दृष्टि से तो आचार्य हरिभद्र, पादलिप्त, जिनप्रभ, वर्धमानसूरि आदि कुछ आचार्य प्रवरों के कर्मकाण्ड संबंधी ग्रन्थ अनुदित और प्रकाशित हुए हैं किन्तु उन पर विधि-विधान के ऐतिहासिक विकासक्रम और तुलनात्मक अध्ययन को लेकर कोई शोध कार्य हुआ हो यह मेरी जानकारी में नहीं है। यहाँ यह ज्ञातव्य हैं कि जैन दर्शन में आचार पक्ष को छोड़कर अन्य विधि-विधान और कर्मकाण्ड पर अन्य परम्पराओं का, विशेष रूप से बौद्ध एवं हिन्दू परम्परा का प्रभाव आया है किन्तु यह प्रभाव कितना और किस रूप में है? इस संबंध में सुव्यवस्थित शोधपरक अध्ययन नहीं हो पाया है मात्र कुछ छुट-पुट लेख प्रकाशित हुए हैं या किन्हीं ग्रन्थों की भूमिकाओं में मात्र संकेत रूप से कुछ कहा गया है। जैन देवमण्डल में हिन्दू और बौद्ध देव-देवियों का जो प्रवेश हुआ वह कब और कैसे हुआ ? इस संबंध में भी संकेतात्मक सूचनाओं के अतिरिक्त प्रामाणिक शोधकार्य का प्रायः अभाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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