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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 565
सूरिमन्त्रकल्पसमुच्चयः
जैसा कि इस रचना के नाम से ही स्पष्ट होता है कि यह अनेक सूरिमंत्रों का संग्रह ग्रन्थ है। इन सूरिमंत्रों के रचयिता अनेक पूर्वाचार्य रहे हैं। इनका संग्रह मुनि श्री जम्बूविजयजी ने किया है। यह ग्रन्थ दो भागों में प्रकाशित है। यहाँ हम भाग ही प्रथम और भाग द्वितीय में संकलित सभी कृतियों की विस्तृत चर्चा न कर, केवल उनका नामनिर्देश ही कर रहे है। इतना अवश्य सम्भव हैं कि है। इनमें से उपलब्ध कृतियों की चर्चा अलग से कर सकते हैं। '
सूरिमन्त्रकल्पसमुच्चय ग्रन्थ के प्रथम भाग में संकलित कृतियाँ निम्न हैं सिंहतिलकसूरि विरचित मंत्रराजरहस्य, जिनप्रभसूरि रचित सूरिमंत्रबृहत्कल्प विवरण, राजशेखरसूरि विरचित सूरिमंत्रकल्प, मेरुतुंगसूरि विरचित सूरिमंत्रमुख्यकल्प
प्रस्तुत ग्रन्थ के दूसरे भाग में संकलित की गई कृतियाँ अधोलिखित हैं १. सूरिमंत्रकल्प २. दुर्गपदविवरण ३. लब्धिपदफलप्रकाशककल्प ४. सूरिमंत्र स्मरण विधि ५. संक्षिप्त सूरिमंत्र विचार ६. सूरिमंत्र संग्रह ७. सूरिमंत्र की जापविधि एवं पटालेखनविधि ८. सूरिविद्यास्तोत्र ६. सूरिमंत्रसाधनाविधि फलादिवर्णनकल्प १०. सूरिमंत्र साधनाक्रम ११. सूरिमंत्रस्तव १२. सूरिमंत्राधिष्ठायक स्तुति १३. सूरिमंत्र के चौदह आम्नाय १४. मुनिसुंदरसूरि आदि पूर्वाचार्यों द्वारा विरचित सूरिमंत्र माहात्म्यदर्शक विविध स्तोत्र १५ प्रवचनसारमंगल १६. विविध परिशिष्ट ।
सूरिमन्त्रकल्पसमुच्चय दूसरा भाग सात परिशिष्टों से युक्त हैं। प्रथम परिशिष्ट मंत्र पदों से युक्त हैं उसमें १. सिंहतिलकसूरिविरचित मंत्रराजरहस्य नामक ग्रन्थ में वर्णित सूरिमंत्र के तेरह प्रकार, २ . जिनप्रभरचित सूरिमंत्रबृहत्कल्प विवरण के आधार पर सूरिमंत्र का स्वरूप, ३. धर्मघोष आम्नाय के तेरह पद, ४ . जिनप्रभसूरि के निज आम्नाय के अनुसार सूरिमंत्र के पद, ५. मलधारगच्छ के अनुसार सूरिमन्त्र, ६. अचलगच्छ के अनुसार सूरिमंत्र, ७. अज्ञातसूरिकृत सूरिमंत्रकल्प आदि प्रमुख रूप से प्रतिपादित है ।
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द्वितीय परिच्छेद में लब्धियों का स्वरूप दिया गया है वे लब्धिपद अग्रलिखित ग्रन्थों के आधार से दिये गये हैं वे इस प्रकार है :- १. मंत्रराजरहस्य और षटखण्डगम के लब्धि पदों की तुलना, २ . आवश्यकसूत्र - मलयगिरिवृत्ति के अन्तर्गत आये हुए कुछ लब्धिपदों के स्वरूप का वर्णन, ३. योगशास्त्र- स्वोपज्ञ वृत्ति के अन्तर्गत आये हुए लब्धिपदों के स्वरूप का वर्णन, ४. षट्खण्डागम चतुर्थ
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यह ग्रन्थ वि.सं. २०२४, 'जैन साहित्य विकास मण्डल, वीलेपारले, मुंबई' से प्रकाशित हुआ
है।
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