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________________ 566/मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य खण्ड में धवलटीका के अन्तर्गत आये हुए लब्धिपदों के स्वरूप का वर्णन, ५. तत्त्वार्थराजवार्तिक के अन्तर्गत आये हुए लब्धिपदों के स्वरूप का वर्णन, तृतीय परिशिष्ट के अन्तर्गत सूरिमंत्रकल्पसमुच्चय में निर्दिष्ट किये गये विचार तथा शब्दों की पारस्परिक तुलना की गई है। चतुर्थ परिशिष्ट में सूरिमंत्र के आम्नायों का संग्रह किया गया है। पंचम परिशिष्ट में विशिष्ट शब्दों का प्रतिपादन है। षष्ठम परिशिष्ट में सोलह आचार्यों एवं उनकी बारह प्रतियों का परिचय उल्लिखित है। सप्तम पिरिशिष्ट यंत्र पट्ट से सम्बन्धित है। इसमें सूरिमन्त्र की साधनाविधि से सम्बन्धित कुछ कृतियों के नामोल्लेख प्राप्त हुये हैं उनमें से कुछ अनुपलब्ध हैं तो कुछ नामसाम्यवाली हैं तो कुछ भिन्न-भिन्न नामवाली होने पर भी एक ही रचनाकार से सम्बद्ध रखती हैं। सूरिमन्त्र से सम्बन्धित निम्न कृतियाँ हमें प्राप्त नहीं हो सकी हैं प्राप्त सामग्री के आधार पर इन कृतियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है - सूरिपदस्थापनाविधि- यह कृति अज्ञातकर्तृक है। संभव है कि इसमें सरिमन्त्र की साधनाविधि के साथ-साथ सूरिपद (आचार्यपद) की स्थापना विधि वर्णित हैं। सूरिमन्त्र- सूरत भंडार की सूची में इस कृति का नाम उल्लेखित है। इस कृति पर जिनप्रभसरि ने 'प्रदेशविवरण' नामक वृत्ति भी रची है। सरिमन्त्रकल्प- यह रचना देवसरि की है। और सूरिमन्त्रकल्पसारोद्धार के समान प्रतीत होती है। सूरिमन्त्रगर्भितलब्धिस्तोत्र- यह रचना अज्ञातकर्तृक है। जैन श्वेताम्बर कान्फरेन्स मुंबई पायधुनी से प्रकाशित है। सूरिमन्त्र प्रदेश विवरण- यह जिनप्रभसूरि की रचना हैं देखे सूरिमन्त्र। सूरिमन्त्र विशेषाम्नाय- यह कृति अंचलगच्छीय मेरुतुंग की है इसका दूसरा नाम सूरिमन्त्रकल्पसारोद्धार है। सूरिविद्याकल्प- यह रचना सूरिमन्त्रप्रदेशविवरण के समान है। यह कृति खरतरगच्छीय जिनसिंहसूरि के शिष्य जिनप्रभसूरि की है। सूरिविद्याकल्पसंग्रह- यह अज्ञातकर्तृक रचना है इस कृति पर देवाचार्यगच्छ के एक शिष्य द्वारा 'दुर्गप्रदेशविवरण' लिखा गया है। सूरिमन्त्रकल्प इसके कर्ता देवाचार्यगच्छीय आचार्य सूर्य के शिष्य है। इसमें लेखक ने अपना नाम स्पष्ट नहीं किया है। इस कृति में क्लिष्ट पदों को स्पष्ट किया गया है। साथ ही साधनाविधि का भी विवेचन किया गया है। यह कृति सूरिमन्त्रकल्पसमुच्चय द्वितीय भाग में पृ. १६६ से २१२ तक में प्रकाशित है। ' जिनरत्नकोश, पृ. ४५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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