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________________ 564/मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य धर्मसिंह के शिष्य क्षेमकर्मण ने की है। यह कृति ‘आगमोदय-समिति, मुंबई' से प्रकाशित है। ४. सरस्वतीषोडशक - इसके सम्बन्ध में जानकारी उपलब्ध नहीं है। ५. सरस्वती स्तोत्र - इस नाम की तीन रचनाएँ हैं एक सरस्वतीस्तोत्र आशाधरजी द्वारा रचित है। दूसरा स्तोत्र बप्पभट्टी ने संस्कृत के १३ पद्यों में रचा है। तीसरा अज्ञातकर्तृक है।' सिद्धयंत्रचक्रोद्धार यह रत्नशेखरसूरि रचित 'सिरिवालकहा' से उद्धृत किया हुआ अंश है। इसमें सिरिवालकहा की १६६ से २०५-१० गाथाएँ हैं। इसका मूल विज्जप्पाय नामक दसवाँ पूर्व है।' टीका - इस पर चन्द्रकीर्ति ने एक टीका रची है। सुकृतसागर इस ग्रन्थ के कर्ता सोमसुन्दरसूरि के शिष्य रत्नमण्डनगणि है। इनका सत्ता समय १५ वीं शती है। हमें सुकृतसागर नामक समग्र ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हुआ है। केवल नमस्कारमंत्र की स्मरणविधि एवं उसकी महिमा को प्रस्तुत करने वाला अंश नमस्कार स्वाध्याय भा. २ में से प्राप्त हुआ है। यह अंश सुकृतसागर अपरनाम 'पेथड़चरित्र' के पंचमतरंग से उद्धृत किया गया है। यह ग्रन्थ 'श्री आत्मानंद जैन सभा, भावनगर' से वि.सं. १६७१ में प्रकाशित हुआ है। इनके द्वारा विरचित जल्प-कल्पलता नामक कवित्वपूर्ण ग्रन्थ सुप्रसिद्ध है। ग्रन्थ के इस अंश में नमस्कारमंत्र की महिमा और उस मंत्र के स्मरण से अनेक प्रकार के उपद्रवों से होने वली उपशान्ति का निरूपण किया गया है। इसके साथ ही यह बताया गया हैं कि नमस्कारमंत्र का विधिपूर्वक स्मरण करने से व्यक्ति सम्मोहन, उच्चाटन, आकर्षण, कामण व स्तंभन आदि शक्तियों का स्वामी बन जाता हैं इसके अंत में 'नमस्कारमंत्र जापविधि का संक्षिप्त रूप से निर्देश दिया गया है। स्पष्टतः यह अंश नमस्कारमन्त्र के माहात्म्य का सम्यक् निरूपण करता है। ' जिनरत्नकोश पृ. ४२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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