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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/551 नवखण्डापार्श्वजिनस्तवन- विपुलमंगल- श्री आनन्द माणिक्यमुनि, ४६. श्री नवपल्लवपार्श्वनाथस्तोत्र- उद्यत्फणा. (मांगरोलमण्डन) श्री लक्ष्मीलाभमुनि, ५०. श्री अन्तरीक्षपार्श्वनाथस्तवन- श्रीश्रीपुरा. (श्रीपुरमण्डन), ५१. श्री मक्सीपार्श्वस्तोत्रकल्याणकारं.- महो. श्रीकल्याणविजयगणि ५२. श्री पार्श्वनाथस्तोत्र- श्री पार्श्वनाथ आल्हादमन्त्री. ५३. श्री पार्श्वनाथस्तोत्र- जयति भुजग.- श्री विल्हणकवि, ५४. श्री पार्श्वनाथस्तवन- पार्श्वनाथ.- अज्ञातकर्तृक, ५५. श्री पार्श्वजिनस्त्रोत- श्री पार्श्व परमात्मानं.- श्री जिनप्रभसूरि, ५६. श्री पार्श्वजिनस्तवन- विभाति यद्भा (सटीका)- श्री सोमसुन्दरसूरि, ५७. श्री पार्श्वनाथलघुस्तवन- शान्तानम्रो- श्री शिवसुन्दरसूरि, ५८. श्री पार्श्वनाथस्तवन- श्री अश्वसेन- श्री रविसागर, ५६. श्री पार्श्वजिनस्तवन- निजगुरो- श्री विद्याविमलशिष्य, ६०. श्री पार्श्वजिनस्तवनकल्याणकेलि (कल्याणमन्दिरचरमचरणपूर्तिरूप)- अज्ञातकर्तृक, ६१. श्री पार्श्वजिनस्तवन- श्रीनिर्वृति.- श्री हेमविमलसूरि ६२. श्री मन्त्राधिराजकल्पकल्याणाकुंरवारिदः. - श्री सागरचन्द्रसूरि उपुर्यक्त वर्णन से स्पष्ट होता है कि इस कृति में मंत्र-यंत्र गर्भित एवं तत्सम्बन्धी साधनाविधि के काफी कुछ स्तोत्रादि संग्रहित किये गये हैं। इस ग्रन्थ की प्रस्तावना अत्यन्त विस्तृत है और पठनीय है। इसमें ६५ प्रकार के यंत्र भी दिये गये हैं जो ग्रन्थ के महत्त्व में सहनगुणा वृद्धि करते हैं। मंत्रचिंतामणि ___यह कृति पं. धीरजलाल शाह द्वारा संग्रहीत है। इसमें जैन और हिन्दू दोनों ही परम्पराओं के अनुसार तांत्रिक साधना के विधि-विधान दिए गये हैं। इसमें जैनधर्म के अनुसार ऊँकार उपासना के सम्बन्ध में पंचपरमेष्ठी एवं ह्रींकार उपासना के विषय में चौबीस तीर्थंकर की चर्चा की गई हैं। इसके साथ ही पार्श्वनाथप्रभु, धरणेन्द्रदेव और पद्मावतीदेवी की उपासना भी चर्चित है। मंत्र-यंत्र-विद्या संग्रह इस कृति के कर्ता का नाम अज्ञात है। इस पुस्तक के प्रथम पृष्ठ पर बारीक अक्षरों में 'णमोकार कल्प प्रारम्भलिखते' लिखा हुआ है, जो बागड़ी ५ मारवाड़ी बोली के शब्दों में लिखा है। इसकी पत्र संख्या नौ है। इसका संग्रह १६ वीं शती में सागवाड़ा गद्दी के भट्टारक के किसी अनुयायी ने किया होगा, ऐसा अनुमान लगाया जाता है। इसमें वशीकरण, उच्चाटन, मारण, विद्वेषण, स्तम्भन ' यह कृति वि.सं. १६६२, साराभाई मणिलाल नवाब- अहमदाबाद से प्रकाशित है। २ उद्धृत- जैन धर्म और तांत्रिक साधना, पृ. ३६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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