________________
550/मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य
पूर्णकलशगणि, १२. श्री पार्श्वनाथस्तोत्र- धरणोरगेन्द्र.(सटीकं मन्त्रादिगर्भित)शिवनाग, १३. श्री कलिकुण्डपार्श्वजिनस्तवन- श्री मद्देवेन्द्रवृन्दा. (महामन्त्रगर्भित), १४. श्री पार्श्वनाथस्तोत्र- ऊँ नमोभगवते. (अट्टे मट्टे मन्त्रगर्भित)- अजितसिंहाचार्य, १५. श्री पार्श्वसप्ततीर्थीस्तवन- ऊँ नत्वा श्री संघविजयगणि, १६. श्री स्तम्भनपार्श्वजिनस्तवन- अज्ञातकर्तृक, १७. श्री स्तम्भनपार्श्वजिनस्तवन- स्तवीमि तं पार्श्व.- अज्ञातकर्तक १८. श्री पार्श्वनाथस्तवन- स्फुरत्केवल- देवसुन्दरसूरि, १६. श्री स्तम्भनकपार्श्वजिनस्तवन- श्री स्तम्भनंपार्श्वजिनं- जिनसोमसूरि, २०. श्री पार्श्वजिनस्तवन- योगात्मनां यो. (स्वोपज्ञावचूरि युत)- श्री जयसागर, २१. श्री पार्श्वजिनस्तवन- श्रीमान पार्श्वः (महेसानामण्डन) रत्नशेखरसरिशिष्य, २२. श्री चारूपमण्डन पार्श्वजिनस्तवन- श्री चारूपपुरः - अज्ञातकर्तृक, २३. श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथस्तोत्र- महानन्दलक्ष्मी- श्री हंसरत्नमुनि, २४. श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथछन्द- सकलसुरासुर - श्री हंसरत्नमुनि २५. षट्पत्तनमण्डन श्री पार्श्वजिनस्तोत्र- षट्पत्तनपुर- श्री जिनभद्रसूरि, २६. श्री पार्श्वजिनस्तोत्रजीरापल्लिपुरो- श्री सौभाग्यमूर्ति, २७. श्री पार्श्वजिनस्तवन- श्री वामेयं (सटीका)श्री उदयधर्मगणि, २८. श्री जीरापल्लिपार्श्वनाथस्तवन- सुधाशनक्ष्माधर- श्री उदयधर्मगणि, २६. श्री पार्श्वजिनस्तवन- अरिहं थुणामि (नवग्रहगर्भित)अज्ञातकर्तृक, ३०. श्री पार्श्वनाथस्तव- ऊँ ह्री अहमथो (अट्टे मट्टे मन्त्र गर्भित), ३१. श्री पार्श्वदेवस्तवन- सदावासनापासना. (सटीका)- श्री जयकीर्तिसूरि, ३२. श्रीजयराजपुरीश श्री पार्श्वजिनस्तवन- शश्वच्छासन. (गुप्तभेदालंकृत)- जिनभद्रसूरि के शिष्य श्री सिद्धांतरुचि, ३३. श्री जयराजपल्लीमण्डन श्री पार्श्वजिनस्तवनशर्मप्रयच्छ. (शर्मस्तव अपराभिधानम्)- अज्ञातकर्तृक, ३४. श्री जीरिकापल्ली श्री पार्श्वनाथस्तवन- जीरकापल्लि- श्री महेन्द्रसूरि, ३५. श्री जीराउलीमण्डन श्री पार्श्वजिनस्तवन- श्री भुवनसुन्दरसूरि, ३६. श्री जीराउलीमण्डन श्री पार्श्वनाथस्तवन- श्री भुवनसुन्दरसूरि, ३७. श्री कुल पाकतीर्थालंकार श्री ऋषभजिनस्तवन- श्री भुवनसुंदरसूरि, ३८. श्री जीरा उलीमण्डनपार्श्वनाथस्तवनश्री योऽभिवृद्धिः - श्री भुवनसुंदरसूरि, ४०. श्री शत्रुजयस्तवन- श्री शजयशैलश्री भुवनसुंदरसूरि, ४१. श्री चतुर्विंशतिजिनस्तवन- विजयते वृषभः. (विविधयमकमय)- श्री भुवनसुन्दरसूरि, ४२. श्री पार्श्वजिनस्तोत्र- ऊँ ह्रीं श्रीं (मन्त्राक्षरगर्भित)- अज्ञातकर्तृक, ४३. श्री पार्श्वनाथस्तवन- श्री पार्श्वभावतः. (यमकमय)-श्री जिनप्रभसूरि ४४. श्री पार्श्वनाथस्तोत्र- जिनराजसदामुनिचतुरविजय, ४५. जैसलमेरमेरुमण्डन श्री पार्श्वजिनस्तवन- आनन्दभन्दवन- श्री जिनसमुद्रसूरि, ४६. श्री कुंकुमशेलापार्श्वजिनस्तवन- कुंकुमरोलभिधं- अज्ञातकर्तृक, ४७.श्रीनवखण्डा- पार्श्वजिनस्तवन- श्री पार्श्व नवखण्डाख्यं- अज्ञातमर्तक ४८. श्री
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org