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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 549 के सभी मंत्र इसके ही गर्भ से जन्में हैं। इस मंत्र में ५ पद, ५८ मातृकाएँ एवं ३५ व्यंजन हैं, जो अलौकिक शक्ति से युक्त हैं। इसमें मंत्र सिद्ध करने वाले की पात्रता का भी संक्षिप्त विवेचन किया गया है। जैन उपासना विधि की दृष्टि से कृ ति महत्त्वपूर्ण है। मंत्र - शास्त्र इसके रचयिता का नाम अज्ञात है । इस पुस्तक में पत्र संख्या २४ के बाद के पत्र नहीं मिलते हैं। इसको भी बागड़ी, मारवाड़ी एवं मालवी बोली में लिखा गया है। इसमें कहीं-कहीं मुस्लिम शाबर मंत्र एवं वैष्णव मंत्र भी मिलते हैं। वस्तुतः यह मंत्र, यंत्र एवं तंत्र का एक अनुपम ग्रन्थ है। यह ग्रन्थ सोहनलालजी के संग्रहालय में सुरक्षित है। मंत्राधिराज इसके लेखक बसन्तलाल, कान्तीलाल एवं ईश्वरलाल हैं। यह कृति ऊँकार साहित्यनिधि, भीलडियाजी तीर्थ से प्रकाशित है। इसमें नमस्कार मंत्र का माहात्म्य बताया गया है। साथ ही नमस्कारमंत्र की विधियुत साधना के प्रभाव से होने वाली भौतिक उपलब्धियाँ दर्शायी गयी हैं। मन्त्राधिराज - चिन्तामणि यह एक संग्रह ग्रन्थ है । 'जैनस्तोत्रसन्दोहः' के दूसरे भाग के रूप में यह ग्रन्थ प्रकाशित हुआ है। इस ग्रन्थ का संपादन - संशोधन मुनि चतुरविजयजी ने किया है। प्रस्तुत विभाग में तेईसवें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ के मंत्र - यंत्रादि की साधना एवं महिमादि से सम्बन्धित ६२ स्तोत्रों, स्तवनों एवं ग्रन्थांशों का संकलन किया गया है। ये स्तोत्रादि अनेक जैनाचार्यों द्वारा रचित हैं। उनकी सूची इस प्रकार है १. उवस्सग्गहरंस्त्रोत ( द्विजपार्श्वदेवगणि कृता टीका), २. नमिऊण- भयहरस्तोत्र (सटीका ) - मानतुंगसूरि, ३. श्री चिन्तामणिकल्प - मानतुंगसूरिशिष्य धर्मघोषसूरि ४. श्री चिन्तामणिकल्पसार- अज्ञातकर्तृक, ५. श्री स्तम्भनपार्श्वजिनस्तोत्रतरुणप्रभाचार्य, ६. श्री पार्श्वप्रभुस्तवन ( मन्त्रगर्भित ) - कमलप्रभाचार्य ७. श्री पार्श्वजिनस्तवन नमिऊणपासनाहं ( मन्त्रगर्भित ) रत्नकीर्त्तिसूरि ८. मन्त्राधिराजस्तोत्र- श्री पार्श्वः पातुः अज्ञातकर्तृक, ६. श्री चिन्तामणिपार्श्वनाथस्तोत्र- जगद्गुरुं जगद्देवं (मंत्रगर्भित ) - जिनपतिसूरि, १०. श्री पार्श्वनाथस्तोत्रम् - ऊँ नमो देवदेवाय ( अट्टेमट्टेमन्त्रगर्भितम्) - मेरुतुंगसूरि, ११. श्री स्तम्भनपार्श्वनाथजिनस्तवनम् - जसुसासणएवि ( यन्त्रमन्त्रादिमयं सटीका )- श्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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