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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/543
(कल्याणार्थ) पीतबीज ध्यानविधि १८. चतुर्थ (उच्चाटनार्थ) नीलबीज ध्यानविधि १६. पंचम कृष्णबीज ध्यानविधि २०. होमविधि २१. ह्रींकार विधान २२. ह्रीं लेखाकल्प विधि २३. मायाकल्प विधि २४. ह्रींकारजाप विधि २५. विसर्जनमंत्र विधि २६. बृहदहीकारकल्प विधि
इसके साथ ही पद्मावती देवी और पार्श्वयक्ष की आराधना विधि से सम्बन्धित पच्चीस श्लोक दिये गये हैं। तीन मायाबीजस्तवन दिये गये हैं जो क्रमशः सोलह, बाईस एवं तेरह पद्यों में निबद्ध है। इसके अन्त में सत्रह गाथाओं का ‘वर्धमानविद्यास्तवन' संकलित किया गया है जो जिनप्रभसूरि द्वारा ही विरचित है। वस्तुतः इस कृति में मंत्र साहित्य की दुर्लभ सामग्री का समावेश हुआ है। भैरवपद्मावतीकल्प
इस कृति के रचयिता जिनसेन के शिष्य आचार्य मल्लिषेण है। ये जिनसेन कनकसेनगणि के शिष्य और अजितसेनगणि के प्रशिष्य थे। ये आचार्य मल्लिषेण दिगम्बर परम्परा के है। उनकी यह कृति संस्कृत के ३३१ पद्यों में और दस अधिकारों में विभक्त है। इस कृति का रचनाकाल वि.सं. ११६४ है। श्री नवाब द्वारा प्रकाशित पुस्तक में इसके २२८ पद्य ही दिये हैं। इसमें 'वनारुणासितैः' से शुरू होने वाला तीसरे अधिकार का तेरहवाँ पद्य, 'स्तम्भने तु' से शुरू होने वाला चौथे अधिकार का श्रीरंजिका यंत्र-विषयक बाईसवाँ पद्य तथा 'सन्दूरारुण' से शुरू होने वाला इकतीसवाँ पद्य इस प्रकार कुल तीन पद्य नहीं हैं।
यह रचना पद्मावती देवी की आराधना, साधना, महिमा एवं प्रभावादि से सम्बन्धित है। इसमें कई प्रकार के विधि-विधान कहे गये हैं। इस ग्रन्थ के प्रारम्भ में पार्श्वनाथ प्रभु को प्रणाम करके अभीष्ट फल को देने वाले 'भैरवपद्मावतीकल्प' को कहने की प्रतिज्ञा की गई है।तदनन्तर पद्मावती का स्वरूप बताया गया है। फिर पद्मावती के तोतला, त्वरिता, नित्या, त्रिपुरा, कामसाधिनी और त्रिपुर भैरवी
' यह कृति बन्धुसेन के विवरण तथा गुजराती अनुवाद, ४४ यंत्र, ३१ परिशिष्ट एवं आठ तिरंगे चित्रों के साथ साराभाई मणिलाल नवाब, अहमदाबाद ने सन् १६३७ में प्रकाशित की है। इसके अतिरिक्त पं. चन्द्रशेखरशास्त्रीकृत हिन्दी भाषा-टीका, ४६ यंत्र एवं पद्मावती विषयक कई रचनाओं के साथ यह कृति 'श्री मूलचन्द किसनदास कापड़िया' ने वी.सं. २४७६ में प्रकाशित की है। २ दसवें अधिकार के ५६ वें पद्य में यह उल्लेख है कि सरस्वती देवी ने कर्ता को यह वरदान दिया था कि यह कृति ४०० श्लोक परिणाम होगी।
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