SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 564
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 534 / मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य इसे जिनप्रभसूरि की कृति माना है। उनकी दृष्टि में यह जिनप्रभसूरि की कृति न होकर सिंहतिलकसूरि की ही कृति होनी चाहिए । ' नमस्कार स्वाध्याय यह संकलित रचना गुजराती भाषा में निबद्ध है। इस रचना का प्रयोजन नमस्कारमंत्र से सम्बन्धित विविध प्रकार की जाप विधियों को प्रदर्शित करना है। इसमें लगभग ग्यारह प्रकार की जाप विधियाँ दी गई हैं साथ ही जापविधियों का फल भी बताया गया है। नमस्कारमंत्र जाप के बारह प्रकार निम्नोक्त हैं- जाप का एक प्रकार चौबीस तीर्थंकरों से सम्बन्धित है। शेष प्रकार इस तरह हैं १. सूर्योदय से ४८ मिनिट पूर्व आठ कर्मों का नाश करने के लिए आठ बार नमस्कारमंत्र का जाप करना। २. दोनों हथेलियों पर सिद्धशिला की कल्पना करके चौबीस तीर्थंकरों का जाप करना। ३. अरिहंत, सिद्ध, साधु व धर्म इन चार शरणों को स्वीकार करते हुए प्रातः, मध्याह्न और संध्या इन तीनों कालों में नमस्कारमन्त्र का जाप करना । ४. स्वयं के हृदय पर जिनेश्वर परमात्मा की कल्पना कर नमस्कारमंत्र का जाप करना । ५. स्वयं के हृदय पर नमस्कारमंत्र को स्थापित करके जाप करना । ६. स्वयं के हृदय में स्थापित अरिहंत परमात्मा के मुख ऊपर नमस्कारमंत्र का जाप करना । ७. अरिहंत प्रभु के नौअंगों पर नमस्कारमंत्र का जाप करना । ८. अरिहंत प्रभु के प्रत्येक अंग पर एक नमस्कार इस तरह बारह अंग पर बारह नमस्कारमंत्र का जाप करना । ६. हृदय कमल में नमस्कार मंत्र की स्थापना करके, नमस्कारमंत्र को देखते हुए जाप करना । १०. अरिहंत परमात्मा के हृदय कमल में नमस्कारमंत्र को स्थापित करके जाप करना । ११. दोनों हाथों की अंगुलियों पर १०८ बार नमस्कारमंत्र का जाप करना । १२. शंखावर्त्त एवं नन्द्यावर्त्त द्वारा नमस्कारमंत्र का जाप करना । इस कृति में उक्त जाप विधियाँ सचित्र दर्शायी गयी हैं। इसमें जाप के अन्य तीन प्रकार, जाप की महिमा, जाप सम्बन्धी आवश्यक सूचनाओं का भी उल्लेख हुआ है। जैन धर्म और तान्त्रिक साधना, पृ. ३५८ २ यह कृति श्री नवकार आराधना भवन, अलींग चकला दलाल की खिड़की के सामने, खंभात से वि.सं. २५१५ में प्रकाशित हुई है। इसके दो अन्य संस्करण भी निकाले जा चुके हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy