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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 503
विधि-उसमें प्रथम हिरण्योदक स्नात्र, दूसरा पंचरत्नचूर्ण स्नात्र, तीसरा कषायचूर्ण स्नात्र, चौथा मंगलमृत्तिका स्नात्र, पाँचवा सदौषधिस्नात्र, छट्टा प्रथमाष्टकवर्ग स्नात्र, नवमाँ पंचामृतस्नात्र, दशवाँ सुगंधौषधि स्नात्र, ग्यारहवाँ पुष्प स्नात्र, बारहवाँ गंध स्नात्र, तेरहवाँ वास स्नात्र, चौदहवाँ चंदनदुग्ध स्नात्र, पन्द्रहवाँ केशर - साकर स्नात्र, सोलहवाँ तीर्थोदक स्नात्र, सतरहवाँ कर्पूर स्नात्र, अठारहवाँ केशर - चंदन - पुष्प स्नात्र करना है, सूर्य-चन्द्र दर्शन, देववंदन, ध्वजबंधन, पौंखणाकार्य, ध्वजदंड - कलश की आरती, प्रदक्षिणा, शिखरपर कलशस्थापना एवं क्षमापना आदि ।
आठवाँ विभाग- यह विभाग पुत्रजन्मवधामणा - नामस्थापन विधि से सम्बद्ध है। इसमें जन्मबधाई, केशर छांटने की विधि, नामस्थापनविधि, लेखनशालाकरणविधि एवं मषीभाजन प्रदान आदि कृत्यों का उल्लेख हुआ है।
नवमाँ विभाग - इस विभाग में ' विवाहमहोत्सवविधि' एवं राज्याभिषेकविधि' का निरूपण हैं। इस विधि के अन्तर्गत मींढल का अभिमंत्रण, मींढल का कर में बंधन, पंचांगस्पर्श, जिनआहान, वस्त्राच्छादन, विविध फलादि का ढौकन, पौंखणविधि, सुवर्णदान, प्रियंगु - कपूर आदि से बिंबों के हाथों का विलेपन, नवग्रहों को बलिबाकुला प्रदान, लग्नवेदिका (चोरी) का निर्माण, मंडप में प्रभु स्थापना, नैवेद्यथालधान्यथाल- लघुकलश आदि की स्थापना करना, घट के ऊपर जौ की शराब रखना, विवाहविधि, पांच जाति के पच्चीस मोदकों का अर्पण, राज्याभिषेकविधि एवं नवलोकांतिक देवों की विनंति आदि कृत्यों का विवेचन है। दशवाँ विभाग- इस विभाग में 'दीक्षाकल्याणकविधि' की चर्चा है। इसमें मुख्यरूप से दीक्षास्नान, दीक्षाकल्याणक वरघोड़ा, कुलमहत्तरा - हितोपदेश, सर्व अलंकार - अवतरण, पंचमुष्टि - लोच, देवदूष्यवस्त्र का स्थापन आदि का प्रतिपादन है।
ग्यारहवाँ विभाग - इस विभाग में 'अधिवासनाविधि' एवं 'अंजनशलाका विधि' का निरूपण है। इसमें मुख्यतया दशदिक्पालपूजन, नवग्रहपूजन, सर्वदिशाओं में बलिबाकुला का प्रदान, देववंदन, कुसुंबी वस्त्र से बिम्बों का आच्छादन, सकलीकरण- शुचिकरण, सूरिमंत्र एवं मुद्रासहित अधिवासनाविधि, अधिष्ठायक देव-देवियों का आह्वान इत्यादि विषयक चर्चा हुई है।
अंजनशलाका विधि के प्रसंग में अग्रलिखित कृत्यों का निर्देश किया गया है बिंब का स्थिरीकरण, शलाकाभिमंत्रण, अंजनाभिमंत्रण, सौभाग्य मुद्रा से बिंबो की अंजनविधि, अनामिका से मायाबीज का स्थापन, दर्पणदर्शन, सूरिमंत्र पूर्वक वासदान, दाहिने कर्ण में मंत्रन्यास, चक्रमुद्रा से सर्वांगस्पर्श, दधिपात्र का दर्शन, पाँच मुद्राओं का दर्शन, आचार्य आदि की प्रतिमाओं पर वासक्षेप प्रदान आदि प्रमुख है।
बारहवाँ विभाग- इस विभाग में 'केवलज्ञानकल्याणकविधि' का निरूपण किया गया है।
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