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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 501 करने का मंत्र, दीपक ऊपर वासचूर्ण प्रदान करने की प्रक्रिया एवं कुंभ - दीपक को बधाने की क्रिया बतलायी गयी है। ४. जवारारोपणविधि - इस विधान में तीर्थजल से भरे हुए घड़ों की स्थापन - - पृथ्वीमंत्र आदि का वर्णन है । ५. क्षेत्रपालस्थापनविधिइस विधान में सामान्यतया क्षेत्रपालस्थापना, क्षेत्रपाल को वासप्रदान, क्षेत्रपालपूजन आदि करने का निर्देश है । ६. माणकस्थंभारोपणविधि - इसमें माणकस्थंभ की पूजा, देहरी में श्रीफल तथा वासप्रदान, स्वस्तिक और नैवेद्य अर्पण का निरूपण है। ७. तोरणस्थापनविधि - इस विधि के अन्तर्गत तोरण बांधने का मंत्र, जिनबिंब की वेदिका का माप, पीठिका का माप, भूमिशुद्धि, समवसरणस्थापना, सुंपटस्थापना, पीठिका ऊपर वासदान, पीठिका का वर्धापन, अष्टप्रकारीपूजा, क्षमापना आदि कृ त्यों का प्रतिपादन है । तीसरा विभाग - इस विभाग में सात प्रकार के विधानों की चर्चा की है। वह इस प्रकार है- १. लघुनंद्यावर्तपूजन विधि - मूल प्रत के अनुसार लघुनंद्यावर्त्तपूजन आठ वलय का प्राप्त होता है। संप्रति में दशवलयवाले पट्ट का पूजन होता है। यहाँ दस वलयवाला पूजन दिया गया है। इस विधान में आत्मरक्षा, शुचिविद्याआरोपण, पट्ट वर्धापन, जिनआह्वान, दसवलय की पूजाविधि - उसमें भी प्रथम वलय में अर्हदादि आठ का पूजन, द्वितीय वलय में जिनेश्वर तीर्थंकरों की माताओं का पूजन, तृतीय वलय में सोलहविद्या देवी का पूजन, चतुर्थ वलय में चौबीस लोकांतिक देवों का पूजन, पंचम वलय में चौसठ इन्द्रों का पूजन, षष्टम वलय में चौसठ इन्द्राणियों का पूजन, सप्तम वलय में २४ यक्ष, अष्टम वलय में चौबीस यक्षिणी, नवम वलय में दसदिक्पाल, दशम वलय में नवग्रह और क्षेत्रपाल का पूजन कहा गया है। इसके साथ ही परिपिंडितपूजा, रांधे हुए नैवेद्य का अर्पण, देववंदन, वासदान आदि करने का निरूपण है। २. क्षेत्रपाल पूजनविधि- इसमें क्षेत्रपाल आहान एवं उसके पूजन का निर्देश है । ३. दशदिक्पालपूजनविधि - इस विधि में दशदिक्पालस्थापना, बाकुला अभिमन्त्रण, दशदिक्पाल आलेखन, दशदिक्पालपूजन आदि कृत्यों का प्रतिपादन किया गया है। ४. भैवरपूजनविधि - इसमें भैरव स्थापना एवं भैरव पूजन का विधान कहा गया है । ५. षोडशविद्यादेवीपूजनविधि - इस विधान के अन्तर्गत सोलहविद्यादेवियों का आह्वान, सोलहविद्यादेवी पट्ट पर कुसुमांजलि अर्पण, सोलहविद्यादेवीयों का पूजन, परिपिंडित पूजा एवं वासदान का उल्लेख है। ६. नवग्रहपूजनविधि - इसमें नवग्रह की स्थापना, नवग्रह का आलेखन, नवग्रह पूजन, नवग्रह को जाप, नवग्रह का अर्घ्य एवं नवग्रह से प्रार्थना करने का सूचन किया गया हैं । अन्त में ग्रहशान्तिस्तोत्र का पाठ एवं वासचूर्ण प्रदान करने का निर्देश है। ७. अष्टमंगलपूजनविधि - इस विधि में अष्टमंगल की स्थापना, नवीन अष्टमंगलपट्ट का पूजन, अष्टमंगल का आलेखन, अष्टमंगल को कुसुमांजलि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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