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________________ 500/मंत्र, तंत्र, विद्या सम्बन्धी साहित्य हुए किया है। साथ ही इसमें अंजनशलाका एवं प्रतिष्ठा करने कराने वाले आचार्यों तथा विधिकारकों की सुविधा का विशेष ध्यान रखा गया है। इस कृति के सम्बन्ध में यह उल्लेख मिलता हैं कि पंचम श्रुतकेवली श्री भद्रबाहुस्वामी द्वारा विद्याप्रवादपूर्व में से 'प्रतिष्ठाकल्प' उद्धृत किया गया था, उस प्रतिष्ठाकल्प के आधार पर जगच्चंद्रसूरी ने 'प्रतिष्ठाकल्प' नामक ग्रन्थ रचें। फिर उसके आधार से और भी पूर्वाचार्यों ने प्रतिष्ठा सम्बन्धी ग्रन्थ रचा। उन पूर्वाचार्यों द्वारा रचित विविध प्रतिष्ठाकल्पों को समक्ष रखकर लगभग ४५० वर्ष पूर्व विजयदानसूरि के तत्त्वाधान में 'प्रतिष्ठाकल्प' नाम से एक ग्रन्थ का संकलन किया गया। इस प्रतिष्ठाकल्प की रचना करते समय प्राप्त प्रतिष्ठाकल्पों के रचयिता आचार्यों तथा उनके ग्रन्थों की आम्नाय एवं गुरु परपरम्परागत मान्यताओं के प्रति पूर्ण वफादारी निभायी गई है। प्रस्तुत प्रतिष्ठाकल्प ५०/७० वर्ष पूर्व हस्तलिखित प्रतियों में प्राप्त था। प्राणप्रतिष्ठा या अंजनशलाका का प्रसंग आने पर ही उसका उपयोग होता था। कितनी ही बार प्रतिकूल प्रसंगों में यह विधान सम्पन्न कराने में मुश्किल होती थी, जब से हस्तप्रतियों का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ तब से ये विधि-विधान करवाने आसान हुए। इस संस्करण का संशोधित करते समय मूल ग्रन्थ की प्रामाणिकता का पूर्णतः ध्यान रखा गया है। साथ ही संस्करण क्रमिक और सर्वत्र ग्राह्य हो एतदर्थ हस्तलिखित प्रतिष्ठाकल्पों, पूर्वप्रकाशित प्रतिष्ठाकल्पों, निर्वाणकलिका-कल्याणकलिका आदि प्रामाणिक ग्रन्थों में जो कुछ विशिष्टताएँ दृष्टिगत हुई, यथानुकूलता उनका संक्षिप्त सूचन किया गया है। यह संशोधित कृति अठारह विभागों में गुम्फित है। इसका विवरण संक्षेप में निम्नोक्त है - प्रथम विभाग - यह विभाग आशीर्वाद, प्रकाशकीय, प्रस्तावना आदि से सम्बन्धित है। द्वितीय विभाग - इस विभाग में प्रतिष्ठाकल्प के प्रास्ताविक ३१ श्लोंकों का भाषानुवाद, क्रियाकारक द्वारा करने योग्य नित्य विधि एवं मंत्रादि का वर्णन है। इसके अतिरिक्त निम्न विधानों की विस्तृत चर्चा है- १. जलयात्राविधि- इसमें वरघोड़ा, उद्यानगमन, स्नात्रादिपूजा, नवग्रह-दशदिक्पालपूजा, ज्ञानादिकपूजा, देववंदनविधि, कलशस्थापना, आचमन, अंगन्यास, करन्यास, जलाकर्षण, जलस्थापना, जलपूजा, नैवेद्यढ़ोकन, आदि क्रियाएँ करने योग्य कही गई हैं। २. कुंभस्थापनाविधि- इसमें नित्यविधि, बारहमुद्राओं से वासक्षेपाभिमंत्रण, आत्मरक्षा, कुंभ भरने की विधि, कुंभ स्थापन विधि, वासचूर्ण प्रदान इत्यादि विधान आवश्यक माने गये हैं। ३. दीपकस्थापनाविधि- इस विधि में घी भरने का मंत्र, दीपक प्रगट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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